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विदाई

सुधाकर मिश्र “सरस”
किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.)
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वो बचपन की धुंधलकी याद अब प्यारी सी लगती है
समझता था जिसे जन्नत वो गोद न्यारी सी लगती है
समझता था बड़ा अपने को उसकी गोद में चढ़कर
नहीं दूजा कोई था सुख उसकी गोद से बढ़कर
वो पल छिन याद जब आते वो दुनिया भली लगती है
सुनहरे दिन वो छुटपन के मासूम सी कली लगती है
वो दिन आया बिछड़ने का वो मेरी प्यारी बहना थी
सजाने चली दूजा घर जो मेरे घर की गहना थी
विदाई कैसे देखूंगा बहन की सोचा मैं रुककर
तत्क्षण अश्रु बह निकले मेरे पोंछा उन्हें छुपकर
करुण क्रंदन बहन का सुनता मैं यह तो असंभव था
कान को बंद कर छुपना ही मेरे लिए संभव था
हुआ आश्वस्त अपने से धीरे से कान को खोला
नज़र दौड़ाई उस रस्ते में जहां से गुज़रा बहन का डोला
बहनें क्यों छोड़ कर जाती यह रीति अटपटी लगती है
बिछड़कर बहन से भाई की दुनिया लुटी-लुटी लगती है

परिचय :-  सुधाकर मिश्र “सरस”
निवासी : किशनगंज महू जिला इंदौर (म.प्र.)
शिक्षा : स्नातक
व्यवसाय : नौकरी पीथमपुर
जन्मतिथि : ०२.१०.१९६९
मूल निवासी : रीवा (म.प्र.)
रुचि : साहित्य पठन व सृजन, संगीत श्रवण
उपलब्धि : आकाशवाणी रीवा से कहानियां प्रसारित, दैनिक जागरण रीवा से कहानियां प्रकाशित। वर्तमान में, महू से प्रकाशित साप्ताहिक “प्रिय पाठक” में नियमित रूप से कविताएं व लघुकथाएं प्रकाशित। अन्य साहित्य पटल पर भी सक्रिय।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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