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विदाई

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रुचिता नीमा

आज आसमान फिर से लालिमा लिये था, बादल किसी भी क्षण बरसने को उत्सुक थे।।।
शायद उन्हें भी दर्द हो रहा था सलोनी के अपने माँ , पापा से दूर होने का
कहते है विदाई बेटी की होती है, पर यहाँ तो उसकी माँ की विदाई हो गई थी।
सलोनी अपने माता पिता की बहुत लाडली सन्तान थी, बचपन से नाज़ो से पली। फिर उसकी शादी भी उसके पिता ने घर के नजदीक ही एक अच्छा लड़का देखकर कर दी कि बेटी को कभी नजरों से दूर नही करेंगे।
समीर भी उसे बहुत प्यार से रखता था, सब कुछ अच्छा चल रहा था।
लेकिन एक दिन सलोनी की मम्मी को उनके मायके से फोन आया कि सलोनी की नानी बहुत बीमार है, और उनके मामाजी ने नानी जी की बीमारी को देखते हुए अपना ट्रांसफर दूर करवा लिया है, ताकि बीमार नानी की सेवा नही करनी पड़े।
लेकिन एक बेटी से माँ का दर्द नही देख गया तो सलोनी की मम्मी को अपना घर छोड़कर उनके मायके कलकत्ता जाकर रहना पड़ रहा है। क्योकि नानी  यहाँ आ नही सकती ।
इस कारण से सलोनी के पापा भी उनकी मम्मी के पास चले गए है।
और इधर सलोनी अपने माता पिता से दूर, बहुत असहज महसूस कर रही कि काश वो कुछ कर सकती।
या अपनी नानी को अपने घर लाकर उनकी देखरेख कर सकती।
लेकिन समाज के नियमो के आगे आज उसकी कोई सुनने वाला नही है।
सलोनी आज सबसे यही पूछना चाहती है कि जब बेटे अपने माता पिता की सेवा ही नहीं कर सकते, तो हम बेटियों की जगह बेटों की विदाई क्यो नही कर देते विवाह के वक़्त।
 कम से कम बेटी अपने माता पिता का पूरा ध्यान तो रख सकेगी।
फिर किसी माता पिता को वर्द्ध आश्रम में नही जाना पड़ेगा।

लेखिका परिचय :-  रुचिता नीमा जन्म २ जुलाई १९८२ आप एक कुशल ग्रहणी हैं, कविता लेखन व सोशल वर्क में आपकी गहरी रूचि है आपने जूलॉजी में एम.एस.सी., मइक्रोबॉयोलॉजी में बी.एस.सी. व इग्नू से बी.एड. किया है आप इंदौर निवासी हैं।


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