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फागुन बसंती

रागिनी सिंह परिहार
रीवा म.प्र.

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बसंती बहारो में,
फागुन के महीन,
अब लौट भी आओ तुम,
होली के फुहरो में….

इतने सारे रंग पहले नहीं देखे,
जब होली आयी तोरंगो के रंग देखे
अब लौट भी आओ तुम,
होली के फुहरो में….

ब्रज की गलियो मे,
गोकुल नगारियो में,
निधिवन में खेलेगे,मोहन संग होली
अब लौट भी आओ तुम
होली के फुहारो में….

राधा संग खेलेगे,
ललिता संग खेलेगे,
गोपियां संग खेले, वृंदावन में होली
अब लौट भी आओ तुम
होली के फुहारो में….

मीरा की निराशा मैं,
पपिहे की तरह टेरु,
बन-बन डोलूं मैं, हर सास तुझे टेरु
अब आ जाओ मोहन
फागुन के महीन में।

बसंती बहारो में,
फागुन के महीन में,
अब लौटे भी आओ तुम
होली के फुहारो में….

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परिचय :- रागिनी सिंह परिहार
जन्मतिथि : १ जुलाई १९९१
पिता : रमाकंत सिंह
माता : ऊषा सिंह
पति : सचिन देव सिंह
शिक्षा : एम.ए हिन्दी साहित्य, डीएड शिक्षाशात्र, पी.जी.डी.सी.ए. कंप्यूटर, एम फील हिन्दी साहित्य, पी.एचडी अध्ययनरत


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