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मूक शब्दों को समझाना

कीर्ति
दिल्ली विश्वविद्यालय
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वफादारी के चर्चों में
कई सदियां गुजर गई
जब मानव ने
होश सम्भाला समाज में
अपना स्थान पाया उसे
अपने पालतू के रूप में
युगों-युगों से अपने
साथ ही पाया
थोड़ा सा अपनापन
थोड़ा सा प्रेम
और थोड़ी सी
सहानभूति उसे
तुम्हारा कर्जदार
बना जाती हैं
उसे चुकाते-चुकाते उसकी
अंतिम सास भी तुम पर
कुर्बान हो जाती हैं
चिलचिलाती धूप,
भारी वर्षा, या हो
कडकडाती ठंड
दृढसंकल्प प्रदान
करने का सुरक्षा तुम्हे
और अधिक हो जाता हैं
उसका प्रबल
उसका मेहताना बस
दो रोटी ही तो होता हैं
परंतु तुमसे उसका लगाव
तुम्हारी भुख से कही
अधिक होता हैं
कौन कहता है
पशुओं में भाव नही होते
वह परेशान होते है
वह रोते है वह
दुखी भी होते है
परंतु मानव की भांति वह
औरो को दोषी नही कहते हैं
साथ तुम्हारे खेलना
उसका तुम्हे बच्चे जैसा
आनंद कराता है
जीवन के कुछ दुखद छड़
भुल जाने को वह
तुम्हे बाध्य बनाता है
मूक है वह संसार के लिए
तुमसे वह बाते बताता है
परछाई की तरह तुम्हारी
हर वक्त वह साथ निभाता हैं।

परिचय :-  कीर्ति (एम.ए)
निवासी : दिल्ली विश्वविद्यालय
घोषणा पत्र : प्रमाणित किया जाता है कि रचना पूर्णतः मौलिक है।


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