राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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अवनी आज अपनी माँ से लगातार सवाल पूछ रही थी। यह अंकल कौन थे? बताओ ना माँ, आखिर कब तक तुम यूं ही घुटती रहोगी? क्या तुम्हें अपनी अवनी पर बिल्कुल भी भरोसा नहीं है? पापा को गुजरे बीस साल हो गए। कब तक उनकी यादों में खुद को डुबोकर रखोगी? आखिर कुछ तो कहो, माँ। देखो माँ तुम्हारे चेहरे की रंगत भी फीकी पड़ रही है। कल को मेरी भी शादी हो जाएगी। मुझें तुम्हारी बहुत चिंता रहती है।
सुधा अंदर ही अंदर घुट रही थी कि वह अपने अतीत की छाया अपनी बेटी की जिंदगी पर नहीं पड़ने देगी। सब कुछ खत्म हो चुका था, फिर आज राजन क्यों लौट आया था, क्या पड़ी थी उसे?
अवनी, माँ मैं ऑफिस जा रही हूँ, शाम को आकर बात करते हैं। उसने जाते-जाते माँ को गले लगा कर चूम लिया था। मेरी प्यारी माँ नाराज हो अब तक, अच्छा अब मैं कुछ नहीं पूछूंगी?
अब तो हँस दो माँ। बेटी का मन रखने के लिए ही सही, सुधा ने दिखावटी हँसी हँस दी, अपनी लाड़ली के लिए। वह हँसना नहीं चाहती थी, पर उसका अवनी के सिवाय था ही कौन? उसका सहारा, उसका प्यार सब कुछ तो थी उसकी बेटी। वह बेटी को जाते चुपचाप देख रही थी, उसे अवनी में अपना ही प्रतिबिंब दिखाई दे रहा था। वहीं अल्हड़पन, उसी तरह सवाल-जवाब करना।
वह ना चाहते हुए भी अतीत में खो गई। शादी से पहले वह राजन से बहुत प्यार करती थी। दोनों एक-दूसरे से इस तरह जुड़े हुए थे, जैसे फूल और उसकी खुशबू। वह सपनों में भी राजन को खोने से डरती थी।
राजन को बड़ा आदमी बनने का बड़ा चाव था। वह हमेशा कहता था, सुधा मैं तुम्हें दुनिया की हर खुशी देना चाहता हूँ। यह सब इस छोटी सी नौकरी में नहीं हो सकता। मैं विदेश में जाकर कोई बड़ा काम करना चाहता हूँ, खूब पैसा कमाना चाहता हूँ।
सुधा, उसे बहुत समझाती थी कि धन-दौलत से खुशियों का कोई लेना-देना नहीं होता। वह बस उसका साथ चाहती हैं। पर राजन पर उसकी बातों का कोई असर नहीं होता था।
वह अपनी जिद पर अड़ा था, उस पर पैसा कमाने की धुन सवार थी। राजन को जल्दी ही यूरोप में एक नौकरी मिल गई थी। वह पैसा कमाने में इतना खो गया कि रोज आने वाले फोन, अब हफ्तों में, फिर महीनों में बदल गए। जब भी फोन आता, सुधा अब मैं कंपनी में बड़े पद पर पहुंच गया हूँ। मैं खूब पैसा कमा रहा हूँ। मैं जल्द ही आ जाऊंगा, मेरा इंतजार करना। धीरे-धीरे फोन आना भी बंद हो गया था।
घर वाले लड़का ढूंढ रहे थे, जल्दी ही सुमेश से शादी हो गई थी, पर मैं राजन को भूल नहीं पा रही थी। आज भी मुझें उसके लौटने का इंतजार रहता था। सुमेश मेरे व्यवहार से खुश नहीं था। उसे हमेशा लगता था कि मेरा शरीर तो उसके पास है, पर दिल कहीं ओर है। वह शराब भी पीने लगा था। रोज शराब पीकर आता, फिर वहीं मार-पिटाई, गालियों की बरसात होती।
मैं अपनी तरफ से सुमेश को खुश रखने का पूरा प्रयास करती थी। पर भाग्य का लिखा तो मिट नहीं सकता और फिर वही हुआ जिसका डर था।उस रात को मैं कभी नहीं भूल सकती। जब रात को मेरी तबीयत अचानक खराब हो रही थी। अवनी मेरे पेट में थी, मेरे बहुत कहने पर भी, वह तेज गाड़ी चला रहा था। अचानक धमाके की आवाज हुई। मैं अस्पताल में थी। अवनी मेरे पास लेटी हुई थी। जब मैंने डॉक्टर से सुमेश के बारे में पूछा, तो उनका जवाब संक्षिप्त- सा था। उन्हें थोड़ी चोट आई है। पर वह ठीक है, मेरे मन को संतुष्टि हुई। पर जब हस्पताल से छुट्टी लेकर घर आई। माँ फूट-फुट कर रो रही थी। घर में रिश्तेदारों की भीड़ देखकर समझ गई थी कि मेरा सब कुछ उजड़ चुका था, सिर्फ आँसू ही अपने थे। मेरा पूरा जीवन का अन्धकार में डूब गया था।
शाम को अवनी ऑफिस से लौट रही थी, उसे वह अजनबी उनके घर की तरफ आते दिखे। अंकल जरा रुकिए, मैं आपसे बात करना चाहती हूँ, प्लीज अंकल। ठीक है चलो कहीं बैठ कर बात करते हैं, अवनी थोडी असहज थीं। पर राजन ने उसके सिर पर प्यार भरा हाथ फेरते हुए कहा, बोलों बेटी। अवनी को यह स्पर्श अन्दर तक छू गया था। बोलो बेटी, क्या पूछना चाहती हो?
अंकल आप मेरी मम्मी को जानते हो। सच बताना, आपको अपनी बेटी की कसम! राजन फूट पड़ा, उसकी आँखें डबडबा रही थी। मुँह से बोल नहीं निकल रहे थे। वह खुद को बहुत बेबस महसूस कर रहा था। वह इतना ही बोला सका, वह मेरी सब कुछ थी। मैं ही अभागा था जो उसे छोड़कर पैसे के पीछे भागता रहा जिंदगी भर। पैसा कमाना ही मेरी मंजिल थी। मैंने खूब पैसा कमाया है, पर उसे खो दिया।
काश सुधा मुझें माफ कर सकती, अपना दुःख मुझें दे सकती। मैं उसका अपराधी हूँ, भगवान मुझें कभी माफ नहीं करेगा। अवनी कोई बच्ची नहीं थी, उसे सब समझ आ गया था।
अवनी :- माँअगर मैं आपसे कुछ माँगू, आप मना तो नहीं करोगी। सुधा, मन ही मन सोच रही थी, बेटी तुम्हें क्या चाहिए? मेरा जो कुछ भी है, सब तेरा ही है। फिर वह ऐसा क्यों कह रही है?
अवनी :- मुझे पापा चाहिए! सुधा, हैरान रह गई कि आज वह बच्चों की तरह जिद क्यों कर रही है? आखिर क्यों?
माँ, मैंने पापा को ढूंढ लिया है। बस अब आपके वनवास का अंत हो गया है। माँ आपका बनवास तो सीता मइया से भी बड़ा हो गया है। मानोगी ना मेरी बात, आपको राजन जी से शादी करनी होगी। वह आपको बहुत प्यार करते हैं, उन्होंने आज तक शादी नहीं की है, प्लीज माँ।
सुधा :- बेटी समाज ऐसे रिश्ते को कभी स्वीकार नहीं करता। अब तुम्हारी शादी की उम्र है, मेरी नहीं।
अवनी :- माँ समाज क्या स्वीकार करता है क्या नहीं? कोई फर्क नहीं पड़ता। आपने बहुत बनवास काट लिया, अब और नहीं।
सुधा ने अवनी को गले लगा लिया, उसके आँसू नहीं थम रहे थे। दरवाजे पर खड़ा राजन सब देख रहा था। उसने दोनों को गले लगा लिया। सुधा मुझें माफ कर दो। नहीं, राजन अब हम सबका वनवास खत्म हो गया।
परिचय : राकेश तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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