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सब कुछ बदला-बदला देखा

डॉ. सुलोचना शर्मा
बूंदी (राजस्थान)
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इक दिन…
अपनों, सपनों और सफर से
कुछ उकता कर कुछ घबराकर..
‌ खुद ही खुद से मिलने पहुंची ..
‌ तो सब कुछ बदला-बदला देखा..

सोचा था सब सूना होगा,
पर…
‌तनहाई को बातें करते
‌ खा़मोशी को गाते देखा!
दम तोड़ते द्वेष देखा
अवसादो को हंसते देखा!
सब कुछ बदला-बदला देखा!!

‌लगा सिसकते होंगे घाव,
‌पर…
‌ज़ख्म तुरपते कांटे देखा,
‌ दुविधा को भरमाते देखा!
व्यथा सुलाती नींदें देखी
गम को लोरी गाते देखा
सब कुछ बदला बदला देखा

‌लगी खोजने मैं क्या हूं?
तो…
बाधा की जड़ ‘मैं’को देखा
इस जीवन के मर्म को देखा
परमेश्वर के रूप को देखा
‌परमशांति के चरम को देखा !
सब कुछ बदला-बदला देखा!!

खुद ही से जब मिलकर आई….
‌भ्रम नहीं सब यथार्थ देखा
स्वार्थ नहीं परमार्थ देखा
सब में मैं हूं सब मुझ में है
‌ सब जन में अपने को देखा!!
सबको अपने जैसा देखा!!
‌ सब कुछ बदला-बदला देखा!!

परिचय :- डॉ. सुलोचना शर्मा
निवासी : बूंदी (राजस्थान)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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