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जीवन का हर एक लम्हा

विवेक रंजन ‘विवेक’
रीवा (म.प्र.)

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जीवन का हर एक लम्हा,
दूर कितना इतना तनहा।
गुम हुई आवाज़ दिल की,
खो गया है साज़ मन का।

दूर कुहुकती कोयल का स्वर,
घावों को तो सहलाता।
पर हौले से रिसता अम्बर,
जाने क्या बूँदों से कह जाता।
और छलक उठती हैं आँखें,
अक्स बिखर जाता दरपन का।
गुम हुई आवाज़ दिल की,
खो गया है साज़ मन का।

सब यादें सीने में हैं चुप,
मत उनको आवाज़ लगाओ।
खुश हूँ अपनी खामोशी में,
रह रह मत नूपुर खनकाओ।
अब सुनता और बुनता हूँ,
संगीत उदासी की धड़कन का।
निष्ठा से प्रेम समर्पण का,
खुशियों से अपनी अनबन का।

जीवन का हर एक लम्हा,
दूर कितना इतना तनहा।
गुम हुई आवाज़ दिल की,
खो गया है साज़ मन का।

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परिचय : विवेक रंजन “विवेक”
जन्म –१६ मई १९६३ जबलपुर
शिक्षा- एम.एस-सी.रसायन शास्त्र
लेखन – १९७९ से अनवरत…. दैनिक समय तथा दैनिक जागरण में रचनायें प्रकाशित होती रही हैं। अभी हाल ही में इनका पहला उपन्यास “गुलमोहर की छाँव” प्रकाशित हुआ है।
सम्प्रति – सीमेंट क्वालिटी कंट्रोल कनसलटेंट के रूप में विभिन्न सीमेंट संस्थानों से समबद्ध हैं।


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