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अन्न का हर कण

मनोरमा पंत
महू जिला इंदौर म.प्र.

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माँ! “आप दादा दादी को भर पेट खाना क्यों नही देती?”
“किसने कहा तुमसे?” दादा ने कि दादी ने ”
“किसी ने भी नही”
तो?
“मैं और भैया रोज देखते हैं, दोनों खाना के बाद थाली में बचा एक-एक कण अँगुली से चाट चाट कर खा लेते हैं। हम दोनों को लगता कि उनका पेट नहीं भरता?”
मैंने देखा कि लाकडाऊन के कारण घर में विराजमान पति देव बच्चों की बात सुनकर मन्द मन्द मुस्कुरा रहे हैं, उन्हे देखकर मै हँसपड़ी। हँसते हुए मैंने दोनों बच्चों को अपनी बाहों में भर लिया और प्यार से समझाया- “दादा दादी पुराने जमाने के हैं, जो भगवान् के द्वारा दी गई हर वस्तु का ध्यानपूर्वक उपभोग करते हैं, किसी भी चीज की बर्बादी तो बिलकुल भी नहीं। रही अन्न की बात, हर दिन के भोजन को भगवान का प्रसाद समझकर वे भोजन करते हैं। उनका मूल मंत्र है आनंद का हर क्षण और अन्न का हर कण कभी भी नहीं छोड़ना चाहिये।”
माँ! समझ गये” …. हम भी थाली में खाना नही छोड़ेगे कहते हुए दोनों भाग गये….।

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परिचय :-  श्रीमती मनोरमा पंत
सेवानिवृत : शिक्षिका, केन्द्रीय विद्यालय भोपाल
निवासी : महू जिला इंदौर
सदस्या : लेखिका संघ भोपाल
जागरण, कर्मवीर, तथा अक्षरा में प्रकाशित लघुकथा, लेख तथा कविताऐ

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