भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल मध्य प्रदेश
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जब से जली है इस अँधेरे, उर कुटी में वर्तिका।
नव पुष्पदल से सज गई है, प्रीत की हर वीथिका।।१
इस मन मरुस्थल में तृषा की, शेष है अब भी तड़प,
आ मानसूनी मेह ने पल, में खिला दी मल्लिका।।२
गाने लगा है मन भ्रमर भी, गीत अब तो फागुनी,
परिधान पुष्पों के पहन कर, आ गई जो वाटिका।।३
जब कोकिला ने कंठ में स्वर, भर दिए है काव्य के,
नव छंद से नैना लड़ाने, चल पड़ी अब गीतिका।।४
जो तारिका मधु चूसने में, मग्न थी तन पुष्प से,
इस गृहनगर की बन गई वह, आजकल संचालिका।।५
कुछ बिंब के तिनके लिए निज, नीड़ जो बुनती बया,
उस छंद के नव नीड़ में नित, गुनगुनाती सारिका।।६
यह कृष्ण’जीवन’ मग्न है बस, शारदे के द्वार पर,
इस लेखनी ने राधिका बन, मन बनाया द्वारिका।।७
निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश
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