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ठोकरें खा के भी

शरद जोशी “शलभ”
धार (म.प्र.)

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ठोकरें खा के भी जो लोग संभल जाते हैं।
मुश्किलों से कई वो लोग निकल जाते हैं।।

नूर की बूँद ज़माने में बही जाती है।
उसके जलवों से ज़माने भी बदल जाते हैं।।

प्यार मिल जाए मुकद्दर से किसी का जिनको।
उनके दिल में कई अरमान मचल जाते हैं।।

बादलों पर सवार होके ना आया करना।
परी समझते हैं बच्चे भी बहल जाते हैं।।

हौसले और इरादे नहीं पक्के जिनके।
आहटें होते ही वो लोग दहल जाते हैं।।

शाख पर पत्तियां निकली नया मौसम आया।
अब तो मौसम की तरह लोग बदल जाते हैं।।

दूर पर्वत पे “शलभ” देवता का डेरा है।
उसके आगोश में पत्थर भी पिघल जाते हैं।।

परिचय :- धार (म.प्र.) निवासी शरद जोशी “शलभ” कवि एवंं गीतकार हैं।
विधा- कविता, गीत, ग़ज़ल।
प्राप्त सम्मान-पुरस्कार- राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान एवं विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं द्वारा वाणी भूषण, साहित्य सौरभ, साहित्य शिरोमणि, साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित हैं।
म.प्र. लेखक संघ धार, इन्दौर साहित्य सागर इन्दौर, भोज शोध संस्थान धार आजीवन सदस्य हैं। आप सेवानिवृत्त शिक्षक हैं, अखिल भारतीय साहित्य परिषद धार (म.प्र.) के जिला अध्यक्ष हैं व वर्तमान में साहित्य सेवा में निरंतर संलग्न हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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