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योगिनी

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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सुदूर-क्षितीज में उज्जवल तारे
तुझे देख कर विहँस रहे है।
नीले अम्बर के नीचे योगनी
निलिमामयी आभा बिखरी है।
निल मणि सी तू अतिसुन्दर
हर पल तू सुन्दर दिखती हो।
नूतनता की सेज सजी है
मादकता से परिपूर्ण क्षण।
तुझे देख कर बिहस रही सब
आतुरता की मधुर मिलन क्षण।
फिर भी मौन बनी रहती हो
प्रखर तेज से दीप्तिमान तू।
महायोग में लिप्त रहती हो
मौन ध्यान की गहराई में।
हरक्षण तू खोयी खोयी रहती हो
कुंडलिनी सहस्त्र सार आज्ञाचक्र
में रमण करती हो।
बोलो तो कुछ मुखारबिंद से
इस शरद पूनम में कहा खोयी हो?
जय माँ तारा जय माँ तारा
की जय घोष को महस्मशान में बोल रही हो।

परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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