अमिता मराठे
इंदौर (मध्य प्रदेश)
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“वाह भगवान आपने मेरी अर्जी सुन ली। इसलिए शुक्रिया अदा करता हूं।”
बहू, आज कुछ मीठा बना लेना भोजन में।’
बाबूजी प्रार्थना तो भगवान ने मेरी सुनी है। रोज पीछे पड़ती थी। डिग्री बहुत सी हो या फिर अकल तेज तर्राट हो।
“अरे बेटा जो हुआ अच्छा हुआ ना।”
दर्शन भी नयी नौकरी पा कर बहुत खुश थे। आज कम्पनी जाॅईन कर घर लौटे थे। आते ही आदेश देते जा रहे थे…… हमने कम्पनी के पास ही, पाॅश काॅलोनी में फ्लेट ले लिया है। हां वहां आरज़ू नाम का लड़का है। उसे पेकिंग का काम सौंप दिया है। उससे काम करवा लेना, और जरा फ्लेट के नल पाइप बिजली तथा रसोई घर की व्यवस्था में सुधार चाहिए तो देखने चलना है, तैयार रहना।
दर्शना देवी सी मूक हो दर्शन को देख रही थी। दो दिन में कितना बदल गया है। कितना आत्म विश्वास आ गया है सारे व्यक्तित्व में! चेहरा भी रौबदार हो गया है।
हां, “देखो दर्शना बाबूजी को जरा भी तकलीफ नहीं होनी चाहिए।”
अब हम यह किराये का मकान छोड़ देंगे। सारे घर में चक्कर लगाते दर्शन कह रहा था, ये पंखा, फर्नीचर जो जो यहां नया बनाया उसे भी निकालने के लिए कहना है।
” अच्छा—अच्छा—“अब आदेश देना बंद भी करोगे कि नहा धोकर भोजन करने आओगे। ”
दर्शना टेबल पर भोजन लगाते सोचने लगी, दर्शन बहुत आगे जाना चाहता है।
लड़की दिखाई की रस्म में मुझे उसी क्षण पसंद कर लिया था। आकर्षक व्यक्तित्व को देख मैंने भी दर्शन को मन से स्वीकार कर लिया था। शिक्षा आदि प्रश्न नहीं पूछें गये थे। घर परिवार के सभी बहुत अच्छे थे। उस समय मेरी काॅलेज की नौकरी को सबने नजर अंदाज कर दिया था।
दर्शन बीकाम ही थे। छोटी सी नौकरी में ख़ुश थे। दर्शन उसे काॅलेज छोड़ते हुए निकल जाते थे। ससुराल इतना सम्पन्न तो नहीं था लेकिन बाबूजी प्रसिद्ध वकील थे। घर मकान कार आदि आवश्यक चीजें थी। माँ की लम्बी बीमारी के बाद निधन हो गया था। तब से बाबूजी का किसी काम में मन नहीं लगता था। धीरे-धीरे कुछ कर्ज को चुकाने के लिए बाबूजी को घर बेचकर किराये के मकान में आना पड़ा था।
पढ़ी लिखी बहू भी किराये के मकान में आई थी लेकिन बाबूजी का मन बहलने लगा था। वह उच्च शिक्षिका और समझदार थी। किसी भी तरह दोनों चाहते थे, दर्शन उच्च शिक्षा प्राप्त कर अच्छे पद और ओहदे का अनुभव ले।
बाबूजी भोजन करते हुए बोले, “बेटा पढ़ाई के लिए बहू ने तुम्हें तंग किया, लेकिन उसका नतीजा फलदाई रहा, “क्या इस बात से सहमत हो।”
“हां बाबूजी सही हैं और तिरछी नजर से दर्शना को देखने लगे। सच “शिक्षक कोई भी हो सकता है। उनकी योग्यता और कुशलता से नया संसार सृजित होता है। केवल बच्चे ही नहीं, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध भी सीखते है। बाबूजी शिक्षा तो जीवन भर चलने वाली सतत पद्धति है।
अपने श्रीधर पाठक जी रोज प्रातः तैयार होकर पढ़ाने निकलते हैं और रात देर तक वापस घर लौटते थे। दोपहर के भोजन को याचना नहीं करनी पड़ती थी, ज्ञान पिपासुओं की उन्हें भोजन करवाने के लिए स्पर्धा होती थी। तब उन्होंने क्रम बना दिया था, किस दिन कौन सा विद्यार्थी भोजन लायेगा।
हां हां, “याद है बेटा, उनसे ही तो बार बार कहता था, “हमारे दर्शन को भी पढ़ाओ।
“सुनते ही दर्शन हा हा—कर हंसने लगे थे “। मेरा काम तो मेरी घर की लक्ष्मी ने ही पूरा कर दिया बाबूजी!
उसनेे समझा दिया, “मनुष्य या तो शिक्षक या शिक्षार्थी।” जब मुझे समझा तब देर हो गई थी। फिर भी मैंने दृढ़ संकल्प कर लिया था कि दर्शना को “एम बी ए” करके दिखाऊंगा।
चलो जी ! अब जल्दी जल्दी भोजन समाप्त करो तो आपके नयी नौकरी की खुशखबरी पड़ोसी वर्मा जी को कहकर आते। नहीं तो वे दोनों ही नाराज होंगे।
अरे! “आज दोपहर में ही बाजार जाते समय मिल गये थे। मैंने उन्हें खबर सुना दी है। बोले कानों पर विश्वास ही नहीं होता कि दर्शन इतनी अच्छी नौकरी का हकदार बन जायेगा। चार घंटे की नौकरी करने के बाद चौराहे पर घूमता रहता था। सच बाबूजी आपकी बहू ने ही कमाल का हौसला दिलाया है दर्शन को।
“अब दर्शना की बारी थी काॅलर ऊपर करने की” दस वर्ष की लम्बी काॅलेज की नौकरी को घर सजाने के लिए दर्शन छोड़ने की सलाह दे रहे थे।
बाबूजी बताइए यह निर्णय सही है? नहीं बेटी अभी तो नौकरी जारी रखो। अपने आप ही चार से छः हाथ हो जायेंगे तो अवकाश लेना ही पड़ेगा।
रात्रि के बारह बजे थे। बगल में सोते दर्शन ने दर्शना को पास में खींचते हुए कहा आप मेरी जिन्दगी की रौनक हो। नये मकान का भार पूरा तुम्हारे पर होगा। बड़े बड़े लोगों का आना जाना लगा रहेगा। तुम्हें जरा भी खाली महसूस नहीं होगा।
मैं भी चाहता हूं तुम्हें आराम मिलेऔर घर की लक्ष्मी घर की शोभा बढाये।
दर्शन से अलग हटते हुए दर्शना बस इतना कह पाई थी कि अभी सो जाओ समय ही निर्णय दे देगा। जैसे आपका निर्णय समय ने कैसे दे दिया?
जीवन के संघर्षों में खोजी सफलता की कुंजी शिक्षा को समर्पित करने से न्याय संगत निर्णय प्राप्त हो जाते हैं। प्यार से दर्शना ने दर्शन को थपकी दी और करवट बदलकर सो गई थी।
परिचय :- अमिता मराठे
निवासी : इन्दौर, मध्यप्रदेश
शिक्षण : प्रशिक्षण एम.ए. एल. एल. बी., पी जी डिप्लोमा इन वेल्यू एजुकेशन, अनेक प्रशिक्षण जो दिव्यांग क्षेत्र के लिए आवश्यक है।
वर्तमान में मूक बधिर संगठन द्वारा संचालित आई.डी. बी.ए. की मानद सचिव।
४५ वर्ष पहले मूक बधिर महिलाओं व अन्य महिलाओं को सशक्त बनाने के लिए आकांक्षा व्यवसाय केंद्र की स्थापना की। आपका एकमात्र यही ध्येय था कि महिलाओं को सशक्त बनाया जा सके। अब तक आपके इंस्टिट्यूट से हजारों महिलाएं सशक्त हो चुकी हैं और खुद का व्यवसाय कर रही हैं।
शपथ : मैं आगे भी आना महिला शक्ति के लिए कार्य करती रहूंगी।
प्रकाशन :
१ जीवन मूल्यों के प्रेरक प्रसंग
२ नई दिशा
३ मनोगत लघुकथा संग्रह अन्य पत्र पत्रिकाओं एवं पुस्तकों में कहानी, लघुकथा, संस्मरण, निबंध, आलेख कविताएं प्रकाशित राष्ट्रीय साहित्यिक संस्था जलधारा में सक्रिय।
सम्मान :
* मानव कल्याण सम्मान, नई दिल्ली
* मालव शिक्षा समिति की ओर से सम्मानित
* श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
* मध्यप्रदेश बधिर महिला संघ की ओर से सम्मानित
* लेखन के क्षेत्र में अनेक सम्मान पत्र
* साहित्यकारों की श्रेणी में सम्मानित आदि
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