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ग्रहण…. मानते हैं

प्रीति शर्मा “असीम”
सोलन हिमाचल प्रदेश

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प्रकृति के,
प्राकृतिक चलन पर।
कितने विरोधाभास उठाते हैं।

ग्रह -नक्षत्रों को,
पढ़ने की बात करते हैं।
लेकिन ……….???
अपने से ही,
अनजान रह जाते हैं।

ग्रहण ….मानते हैं।
कितने अनिष्ट ग्रहों की,
सूची को गढ़ जाते हैं ।
लेकिन अपनी सोच पर,
अंधविश्वास के लगे,

ग्रहण का कोई हल नहीं पाते हैं।

ग्रहण ……मानते हैं।
भगवान….. मानते हैं।
सब अच्छा …करता है।

यह …….भी मानते हैं।

फिर …..बुरे पर,
तिलमिलाते हैं।
बुरा ….. क्या है।

अपनी सहूलियत के लिए,
क्यों ………हमारे,
संवाद बदल जाते हैं।

शायद…… हम,
भगवान को भी,
आधा ही मानते हैं।

अजीब ढोंग ओढ लेते हैं।
खुद प्रश्न देकर,
खुद उत्तर गढ़ लेते हैं।

जब सहूलियत का,
प्रश्न आता है।
हम बीच वाला,
रास्ता पकड़ लेते हैं।

जबकि ………हम सब,
अपनी सहूलियत से ही,
अपने फायदे के लिए,
ग्रहण करते हैं।

परिचय :- प्रीति शर्मा “असीम”
निवासी – सोलन हिमाचल प्रदेश


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