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पूरबा बयार से

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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ग्रामो मे मेरे पूरबा बयार से
बसवारीयो की खूँटे टकराती है।
चरमर-चरमर की आवाजे
भैरवी की राग सुनाती है।

कराहती है गरीबी बेदर्द बन
झोपड़ियों में-
जहां दिन में सूर्य की रोशनी
रातें में चांदनी झांकती है
जहां दीपक के नाम पर चंद देर तक का ही सही
अचानक चांदनी टिमटिमाती है।

अंधकार की नीरवता में
पवित्र निश्चल हृदय पुचकारती है।
पावस की फुहार, में जहां दूधिया चांदनी में
मजबूरियों की हाहाकार में
नई विवाहिता बालाए सिकुड़कर नहलाती है।

गाती है उनकी माताए
ग्रामीण वृद्धाए खुशी की गीत ।
घुंंघट के नीचे निःसंकोच शर्माती है।
राजनीति से दूर, सुदूर पश्चिम मे
पेड़ो की टहनियों पर
बैठ कर चिड़िया चहकती है।

महकती है बागे जब आम् मंजर खिलती है।
गाँवो की पोखर मे कमल की फूल
भ्रमर की गुनगुनाहट सुन अचानक सहम जाती है।

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परिचय :-  ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला –पूर्वी चंपारण (बिहार)


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