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पृथ्वी है वरदान

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच

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पृथ्वी है वरदान प्रभु का,
इसको गले लगाएं हम।
इसे सजाएं इसे संवारें,
जीवन सफल बनाएं हम।।

रहने की है जगह यही तो,
पालन पोषण करती है।
बाद मृत्यु के आश्रय देने,
वाली भी ये धरती है।।
जीवन की क्या कोई कल्पना,
बिन इसके हो सकती है।
इसीलिए तो धरती हमको,
लोगों माँ सी लगती है।।
माँ माने हम माँ सा ही दें,
मान इसे सुख पाएं हम।
इसे सजाएं इसे संवारें,
जीवन सफल बनाएं हम।।

धरती को धनवान रखें हम,
कभी न निर्धन होने दें।
जितना हो आवश्यक हम लें,
नाहक इसे न रोने दें।।
बंजर गर कर देंगे धरती,
कैसे जान बचाएंगे।
भूखे प्यासे रहना होगा,
जीवन कैसे लाएंगे।।
ऐसा ना हो छाती छलनी,
करें और पछताएं हम।
इसे सजाएं इसे संवारें,
जीवन सफल बनाएं हम।।

जैव विविधता हो तो धरती,
कितनी सुंदर मन भाती।
हरी हरी जब चादर ओढ़े,
नई वधू सी इठलाती।।
पेड़ अगर कट जायेंगे तो,
क्या बरसात रिझाएगी।
कंकरीट के जंगलों में क्या,
खुशबू गीत सुनाएगी।।
जितने काटें उससे ज्यादा,
बढ़ के पेड लगाएं हम।
इसे सजाएं इसे संवारें,
जीवन सफल बनाएं हम।।

अगर प्रदूषण फैलाया तो,
साफ धरा कब रह पाती।
मानव का मानवता गुण है,
धरती अपनी है थाती।।
सर्दी गर्मी और बारिश का,
समुचित चक्र चलेगा जब।
धरती का अस्तित्व बचेगा,
देखा ख्वाब फलेगा तब।।
“अनन्त”धरती बढ़ो बचाएं,
स्वर्ग धरा पर लाएं हम।
इसे सजाएं इसे संवारें,
जीवन सफल बनाएं हम।।

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परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
निवासी : नीमच


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