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बेजुबान

राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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बेटी, काजल तुम बहुत उदास रहने लगी हो। बेटी अब तुम इस घर में कुछ ही दिन की मेहमान हो, बस बीस दिन और। तुम हमेशा-हमेशा के लिए पराई हो जाओगी। माँ, बोले जा रही थी। पर काजल एकदम चुप्पी साधे बैठी थी। वह माँ की बातों से पूरी तरह अनजान थी।
अच्छा बेटी, समझदार बनो। उदासी से काम नहीं चलेगा। वह काजल के सिर पर हाथ फेर कर कमरे से बाहर चली गई। जबसे काजल का रिश्ता हुआ है, उसे फुर्सत ही कहाँ थी? शादी से जुड़े कामों में वह बहुत बिजी रहती थी। वह अपनी बेटी की शादी में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती थी। एक-एक समान अपनी पसंद का खरीद रही थीं।
चाहें कपड़े हो, आभूषण हो या जरूरत की वस्तुएं। सभी चीजों का चुनाव वह बड़ी तन्मयता से कर रही थीं। हर माँ को इसी तरह की चिंता होती है। तो वह इसमें नया क्या कर रही थी? वह खुद से कह रही थी। वह बीच-बीच में थोड़ा आराम भी कर लिया करती थी, अपने कमरे में।
उसके पास किसी चीज की कमी नहीं थी। बड़ा घर, पति का अच्छा- खासा बिजनेस। वह खुद को बहुत ही भाग्यशाली समझती थी। वह इन सब के लिए भगवान का धन्यवाद करती नहीं थकती थीं।
उसे आज भी वह दिन याद था, जब उसकी शादी की बात चल रही थी। तब उसके पिता ने इस शादी का कितना विरोध किया था? उसके पिता का मानना था कि लड़के का काम प्राइवेट हैं। हमारी बेटी का गुजारा कैसे होगा? पिता जी माँ को बार-बार समझा रहें थे। उस समय मन्दी का दौर था। काम-धन्धे ठप चल रहे थे। सिर्फ सरकारी नौकरी वालों का परिवार सुरक्षित लगता था।
पर माँ भी जिद पर अड़ गई थी। प्राइवेट काम है तो क्या हुआ? लड़का पढ़ा-लिखा, समझदार है। देखना एक दिन हमारी बेटी राज करेगी। पर पिता जी को कोई भरोसा नहीं था। पर माँ की जिद के आगे वह हार मान गए थे। माँ थीं भी बड़ी जिददी।
वह पति की आवाज सुनकर वर्तमान में लौट आई। पति उसे बार-बार यही कह रहे थे, सभी सामान देख लो बाद में ना कहना यह ठीक नहीं हैं, वह ठीक नहीं है। जी-जी आप चिंता ना करें। आज आप कुछ परेशान लग रहे हो। शादी का घर है, काजल की माँ परेशान कैसे ना रहूँ? काश हमारा भी एक बेटा होता, सब खुद ही संभाल लेता।
ये बात कहकर वह खुद ही झेंप गए। बात को बदलने की कोशिश करने लगें। जब भी मैं बाहर से आता हूँ, तुम मुझे चाय भी नहीं पूछतीं, पता नहीं कहाँ खोई रहतीं हो? बस शुरू हो जाती हो। जाओ, दो कप चाय बना लो। तुम्हारे हाथ की चाय में जो मिठास है, वह और कहीं नहीं है। वह गुमसुम सी रसोई की ओर बढ़ गई।
उसे इस बात का अच्छी तरह अहसाह था कि वह एक बेटा पैदा नहीं सकी थीं। वह भी क्या करती, काजल के जन्म के बाद उसका गर्भ…..।उसका बार-बार गर्भपात होता रहा। उसे इसका सदा अफसोस रहा। वह बार- बार हो रहें गर्भपात से टूट चुकी थीं।
अरे भाग्यवान, अभी तक चाय बनी, नहीं क्या? आज तो बहुत बढ़िया चाय बनी है। तुम्हारे हाथ की चाय पीकर तो तुम्हारे हाथ चूमने को जी चाहता है। अब बन्द भी करो तारीफ करना। वह इतरा कर बोली। अरे नहीं सच कह रहा हूँ। कहकर वह बाहर निकल गए। पर जैसे ही उसने चाय की पहली घुट भरी, वह हैरान परेशान रह गई। क्योंकि वह चाय में मीठा डालना ही भूल गई थी? पर वह समझ गई थी, इसका कारण क्या था? वह खुद पर हँस पड़ी। फिर वह अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हो गई।
आज काजल का मन बहुत उदास था। वह खिड़की पर खड़ी अपने मम्मी-पापा के बारे में सोच रही थीं। वह अपनी इच्छाओं को तिलांजलि देने पर तुली थीं। वह नहीं चाहती थी कि अपने मम्मी-पापा का मन दुखाएं। क्योंकि उसके मम्मी-पापा ने उसे कभी किसी चीज की कमी नहीं छोड़ी थी। वह उसकी हर फरमाइश पूरी करते थे। उसका पूरा जीवन ऐशो-आराम में बीता था।
बढ़िया स्कूल, कॉलेज, उसने जो भी इच्छा की थीं, वह मम्मी-पापा ने पलक झपकते ही पूरी कर दी थी। पर वह अपने प्यार के हाथों मजबूर थी। वह माधव पर दिलों जान से मर मिटी थीं। माधव उसके पड़ोस में ही रहता था। वह साधारण सा लड़का था। पर बहुत ही सुंदर, लंबा- तगड़ा था। बिल्कुल किसी फिल्म के हीरो की तरह। वह बचपन से ही माधव के साथ थी। उसे उसकी सौम्यता बहुत पसंद थी।
इतने गुण होते हुए भी उसमें दो कमी थी। साधारण-घर परिवार, दूसरा उसका बेजुबान होना। वह बोल नहीं सकता था। वह जन्म से ही गूँगा था। वह हर काम में होशियार था। पर समाज की नजरों में वह दया का पात्र ही था। लोग ऐसे लोगों पर दया तो कर सकते हैं। पर उन्हें अपनी जिंदगी में शामिल करना सभी के बस की बात नहीं होती।
माधव अच्छी जॉब के लिए लगातार प्रयास कर रहा था। वह भी काजल को पसंद करता था। पर कभी भी अपनी भावनाएं व्यक्त नहीं कर सका। वह आती-जाती काजल को देखता रहता था। उसे देखकर मुस्कुराता रहता था। बेजुबान होना उसकी सबसे बड़ी कमजोरी थी।
घर में काफी चहल-पहल थी। सभी रिश्तेदार जुड़े हुए थे। पर काजल बहुत उदास थी। वह मन ही मन खुद को खत्म करना चाहती थी। उसे अपना भविष्य अंधकार में लग रहा था। उसे पता था कि माधव कभी भी पहल नहीं करेगा। वह भी मम्मी-पापा को कुछ भी बताने से हिचक रही थी। मम्मी-पापा ने इतना अच्छा लड़का, उसके लिए चुना था। हर कोई उसे इस रिश्ते के लिए बधाई दे रहा था।
पर उसकी उदासी बढ़ती जा रही थी। उसका सुंदर चेहरा मुरझाता जा रहा था। उसकी आंखें हर समय लाल रहती थी। पर कहते हैं ना, माँ से कुछ भी छुपा नहीं रह सकता। उन्होंने काजल की उदासी देखकर उसका मन टटोलना शुरू कर दिया।
बेटी क्या तुम्हें यह रिश्ता पसंद नहीं है? क्या लड़का ठीक नहीं है? घर-बार में कोई कमी है। कुछ तो कहो बेटी, तुम्हारी खुशी से बढ़कर हमारे लिए कुछ भी नहीं है। वह माँ के गले से लग गई। माँ मैं माधव से प्यार करती हूँ। मैं उसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती। उसकी आंखों से दर्द के आँसू निकल रहे थे।
मां ने उसे सीने से लगा लिया। शादी में सिर्फ सात दिन बचे हैं। पर बेटी वह बोल नहीं सकता। उसके साथ तुम्हारा जीवन नर्क बन जाएगा। हमने तुम्हें बड़े लाड़-प्यार से पाला हैं। तुम्हें अपने फैसले को बदलना होगा। बचपन की दोस्ती को दोस्ती ही रहने दो। प्यार तो शादी के बाद ही होता है। और फिर वह हमारी बराबरी का भी नहीं है।
जैसे ही पापा को इस बात का पता चला घर में तूफान आ गया। पर यह तूफान खुशियों का था। पापा ने काजल कि सारी बात ध्यान से सुनी। वे बेटी की खुशी के लिए माधव से मिले। माधव को देखकर उन्हें अपना अतीत याद हो आया। उन्होंने माधव को बेटी का हाथ सौंप दिया। उन्होंने काजल की माँ को भी बड़े प्यार से समझाया। हमारी बेटी की खुशी, हमारे लिए सबकुछ है।
माधव ने सुहाग-सेज पर बैठी काजल को एक कागज का टुकड़ा पकड़ा दिया। जिसमें लिखा था “प्यार में इतनी ताकत होती है कि वह बेजुबानों की भाषा भी समझ जाता है”। वह सुहाग-सेज से उठी। उसनें माधव को गले से लगा लिया। तुम बेजुबान नहीं हो, मेरे माधव!

परिचय : राकेश तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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