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सूखा सावन

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रचयिता : विजयसिंह चौहान

आंगन में लगा आम का पेड़ पूरी कॉलोनी में एकमात्र फलदार, छायादार वृक्ष जिसकी छांव में आज भी मां – बाबूजी कुर्सी डालकर हरियाली का आनंद लेते हैं। फ़ल के समय लटालूम आम ना केवल इंसानों को बल्कि परिंदों को भी तृप्त करता है।
अल सुबह मिट्ठू, दिनभर गौरैया और कोयल की कूक से आँगन चहक उठता…. तो कभी, गिलहरी की अठखेलियां देख मन का सावन झूम उठता।
हरा भरा आंगन अब सड़क चौड़ीकरण की जद में आ गया। कल ही विकास के नाम पर रंगोली डाली थी और कुल्हाड़ी, आरी वृक्ष के नीचे रख गए थे ….सरकारी मुलाजिम।
रात भर से पक्षियों का उपवास है, पक्षियों के चहकने और अठखेलियो पर विराम लग चुका, यही नही बादल का एक झुण्ड पड़ोस के मोहल्ले से गुजर गया। अबकी बार लगता है, मां-बाबूजी सूखा सावन देखेंगे, अपने आंगन।

लेखक परिचय : विजयसिंह चौहान की जन्मतिथि ५ दिसम्बर १९७० जन्मस्थान इन्दौर (मध्यप्रदेश) है, इसी शहर से आपने वाणिज्य में स्नातकोत्तर के साथ विधि और पत्रकारिता विषय की पढ़ाई की, आप सामाजिक क्षेत्र में गतिविधियों में सक्रिय हैं, वहीं स्वतंत्र लेखन, सामाजिक जागरूकता, के साथ साथ समाज सेवा भी करते हैंl
लेखन में आपकी विधा-काव्य, व्यंग्य, लघुकथा और लेख हैl आपकी उपलब्धि यही है कि, उच्च न्यायालय (इन्दौर) में अभिभाषक के रूप में सतत कार्य तथा स्वतंत्र पत्रकारिता जारी है। हाल ही में आपको डॉक्टर एसएन तिवारी स्मृति सम्मान समारोह में साहित्य के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए सम्मानित भी किया गया है।

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