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सूखती घास

वचन मेघ
चरली, जालोर (राजस्थान)

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अरे! ओ घमंड़ी बादल।
तू हो तो न गया पागल।
सब लगाएं तेरी आस।
देखो ये सूखती घास।।
तू सबसे निराला है
तेरा वर्ण काला है
जीवन का रत्न खास।
देखो ये सूखती घास।।
मेघ जलद घन तेरे नाम
बिन तेरे बने न कोई काम
तेरी अनुपस्थिति सबको अहसास।
देखो ये सूखती घास।।
बहुत बरसे तो अतिवृष्टि
कम बरसे तो अनावृष्टि
दोनों से होता विनाश।
ये देखो सूखती घास।।
जोर जोर से गरजता है
फिर भी नहीं बरसता है
लोगों का टूटता विश्वास।
देखो ये सूखती घास।।
महीना जब आता है सावन का
लगता बहुत मनभावन का
साजन नही सजनी के पास।
देखो ये सूखती घास।।
सबको तू तरसाता है
बहुत कम जल बरसाता है
मिटती नही इससे प्यास।
देखो ये सूखती घास।।
जब सावन ही जाए सूखा
कैसे रहें कोई प्यासा और भूखा
करने लगे लोग प्रवास।
देखो ये सूखती घास।।
जिस जिस ने बीज बोएं
बाद में पछताएं और रोएं
फसलो का होता हृास।
देखो ये सूखती घास।।
जब सूख गया गुलशन का गला
कलियों का जीवन पानी बिन जला
प्रकृति बनती जिंदा लाश।
देखो ये सूखती घास।।
पेड़ हमे देते हैं प्राण वायु
बिन इसके घटती प्राणियों की आयु
ऐसे में घुटने लगते हैं श्वास।
देखो ये सूखती घास।।
बार बार पड़ते रहेंगे जब अकाल
क्या होगा तब प्राणियों का हाल
कैसे होगा भारत का विकास।
देखो ये सूखती घास।।

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परिचय :- वचन मेघ
निवासी : चरली, जिला-जालोर, (राजस्थान)


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