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सपने

श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
लखनऊ (उ.प्र.)

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बिखरी हैं ज़मीन पर यादों की सारी कतरनें,
कुछ ख्वाब रखे थे जाने कहाँ गुम हो गये।
तिनका तिनका समेटते रहे इस जहाँ से हम,
सपनों के वो खजाने अब कहाँ गुम हो गये।

बीते कल में खुद को ढूंढता अपना वज़ूद
इस अंधाधुंध भीड़ में कहीं गुम हो गया है।
जब तब तनहाई के साये चीखते हैं मुझ पे
एक परछाईं सिसकती है बेजुबान सी
ढूंढते रह जाते हैं भीड़ में हम भी चेहरे
काश कुछ चेहरे अपनापन तो जतलाते।
सब सोचता समझता रहा है वज़ूद
ये कल भी था और आज भी है।

मगर ये हकीकत तो सबको पता है
हंसी में भी छिपे रोग छल जाते हैं।
यहाँ रोज ही अपने सपने बिखरते,
इस जहाँ से चलो हम निकल जाते हैं।

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परिचय :- श्रीमती क्षिप्रा चतुर्वेदी
पति : श्री राकेश कुमार चतुर्वेदी
जन्म : २७ जुलाई १९६५ वाराणसी
शिक्षा : एम. ए.,एम.फिल – समाजशास्त्र,पी.जी.डिप्लोमा (मानवाधिकार)
निवासी : लखनऊ (उ.प्र.)
विशेष : साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने के शौक ने लेखन की प्रेरणा दी और विगत ६-७ वर्षों से अपनी रचनाधर्मिता में संलग्न हैं।


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