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मत निकलो बाहर मरने के लिए

दामोदर विरमाल
महू – इंदौर (मध्यप्रदेश)

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ज़िन्दगी पड़ी है काम करने के लिए।
मत निकलो बाहर तुम मरने के लिए।

थोड़े से दिन की बात है घर मे ही रहो,
तैयार रहो सबको सतर्क करने के लिए।

आया है कोरोना और जाएगा भी सही,
यूं ही चुपचाप ना बैठें हम डरने के लिए।

नज़र रखो घर मे आने जाने वालों पर,
कुछ है तो नही संक्रमित करने के लिए।

साबुन से धोते रहें लगातार हाथों को,
ताज़ा भोजन लीजिये पेट भरने के लिए।

मीठा खाना और ठंडा पीना बन्द है,
गर्म पानी ठीक गला तर करने के लिए।

नवरात्रि में में हम मंदिर भी न जाएं,
वो भी घर है नमाज़ अदा करने के लिए।

दिल्ली यूपी बॉर्डर पर भीड़ लगी है,
वो लाचार है पैदल पलायन करने के लिए।

दिल्ली में सिस्टम क्या सोया हुआ है?,
लोग सड़क पर उतरें है अब मरने के लिए।

किसी को नसीब नही हुआ दानापानी,
कोई अगर देदे तो उसकी है मेहरबानी।

जहां देखो इसी बात का हो रहा है रोना,
कैसी भयानक बीमारी आई है कोरोना।।

हर एक के दिल मे ये उम्मीद जगायेंगे,
हम मिलकर इस बीमारी को भगाएंगे।।

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परिचय :- ३१ वर्षीय दामोदर विरमाल पचोर जिला राजगढ़ के निवासी होकर इंदौर में निवास करते है। मध्यप्रदेश में ख्याति प्राप्त हिंदी साहित्य के कवि स्वर्गीय डॉ. श्री बद्रीप्रसाद जी विरमाल इनके नानाजी थे। हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक सम्मान २०२० एवं आपके द्वारा अभी तक कई कविताये, मुक्तक, एवं ग़ज़ल व गीत लिखे गए है, जो आये दिन अखबारों में प्रकाशित होते रहते है।  गायन के क्षेत्र कराओके गीत गाने में आप खासी रुचि रखते है।


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