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मां से भी कोई माफ़ी मांगता है भला?

ममता रथ
रायपुर (छत्तीसगढ़)
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                            मां तो वो होती है जो अपनी होती है, बहुत अच्छी होती है, जो कभी नहीं रूठती, रूठती भी है तो तुरंत मान जाती है। मां की बातें हमेशा इतनी एक सी होती है कि लगभग रट चुकी होती है। खाना ठीक से खाओ, क्या हुआ क्यों नहीं खा रहे, तबीयत ठीक नहीं है क्या, कहां जा रहे, किसके साथ जा रहे, कब आवोगे, शाम को जल्दी आ जाना, दोस्तों के फोन नंबर देते जाओ, गाड़ी धीरे चलाना, जल्दी सो-जल्दी उठो, कपड़े ढ़ंग से पहनो, बाल दाढ़ी कटवा लो, बाहर का खाना ज्यादा मत खाओ, अच्छे दोस्त बनावो, उफ़!!! इस सूची का कोई अंत नहीं। इन सारी हिदायतों के लगातार प्रसारण से हम मां को लेकर लापरवाह हो जाते हैं। ये सारी बातें मां के सामने तो बुरी लगती है, पर जब हम अकेले होते हैं यहीं बातें बहुत याद आती है। हमें अपराध तो स्वीकारना होगा कि हम मां की बातों को गंभीरता से नहीं लेते, पर मां से माफी कैसे मांगे, वो तो कुछ बोलती नहीं, बस गुस्सा होकर खुद ही रो पड़ती है।
दुनिया की सारी मां चाहती है कि उसके बच्चे हमेशा छोटे ही रहे, पर ऐसा नहीं होता। जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं हमारी सोच का दायरा बढ़ता है, हमारी सोच में बदलाव आता है, हम स्वयं को अभिव्यक्त करते हैं, कई बार तरीके भी ग़लत होते हैं, हमारी आवाज़ तेज हो जाती है, हम बहस भी कर बैठते हैं, गुस्सा भी बहुत होते हैं, पर गुस्सा शांत होते ही पछताते भी है, माफी भी मांगना चाहते हैं पर मांग नहीं पाते, क्यों? क्योंकि जानते हैं मां तो मां होती है माफ जरूर कर देगी। मां तो वो होती है जो हमारी गुस्ताखीयो में भी अपने लिए चाहत ढूंढ लेती है।

परिचय :-  ममता रथ
पिता : विद्या भूषण मिश्रा
पति : प्रकाश रथ
निवासी : रायपुर (छत्तीसगढ़)
जन्म तिथि : १२-०६-१९७५
शिक्षा : एम ए हिंदी साहित्य
सम्मान व पुरस्कार : लायंस क्लब बिलासपुर मे सम्मानित, श्री रामचन्द्र साहित्य समिति ककाली पारा रायपुर २००३ में सांत्वना पुरस्कार, लोक राग मे प्रकाशित, रचनाकार में प्रकाशित
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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