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कोई ढुंढ कर ला दो 

कोई ढुंढ कर ला दो 

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रचयिता : ईन्द्रजीत कुमार यादव

कोई ढुंढ कर ला दो
कोई ढुंढ कर ला दो-
गुम हो गया है जमाने के इस शोर मे,
औद्योगीक जगत के दौर मे,
वो मन को हर्षाती जिवनधारा वर्षाती,
खेतों मे लहलहाती वो हरियाली।
कोई ढुंढ कर ला दो-
गुम हो गया है इस आतंकी कहर मे,
नफरतों के जहर मे,
मन को लुभाती, मन को मन से मिलाती,
अँधकार को भगाती वो दिवाली।
कोई ढुंढ कर ला दो-
गुम हो गया है निरक्षरता के अंधकार मे,
रुढिवादियों कि तलवार मे, संसार को जगाती,
अपने प्रकास से ज्ञान के दिपक को जलाती,
वो सुरज कि लाली।
कोई ढुंढ कर ला दो-
गुम हो गया है इस जाती-धर्म के खेल मे,
खुनी खेलों के खेल मे, हमारी एकता
अखण्डता को दर्शाती, हमारे संस्कारो को बढाती,
पूर्वजों से मिली वो आशिर्वाद कि थैली।
कोई ढुंढ कर ला दो-
गुम हो गया है इस नोटों के खेल मे,
ईष्या द्वेष के इस जेल मे,
बच्चों कि वो किलकारी,
हँसती-हँसाती खुशीयाँ वर्षाती वो खुशहाली।

 

लेखक परिचय :- 
नाम : ईन्द्रजीत कुमार यादव
निवासी : ग्राम – आदिलपुर जिला – पटना, (बिहार)

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