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मन वियोगी

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल मध्य प्रदेश

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आधार छंद- सार्ध मनोरम
मापनी- २१२२ २१२२ २१२२
समान्त- अल, पदान्त- रही हूँ,

मन वियोगी बर्फ जैसी गल रही हूँ।
मैं अँधेरी रात प्यासी ढल रही हूँ।।१

याद में जलने लगा है मन मरुस्थल,
वेदना की बन सदी मैं खल रही हूँ।।२

अनमना शृंगार तन को टीसता अब,
बिन पिया के ज्वाल सी मैं जल रही हूँ।।३

हो गई गायब हँसी इस आरसी की,
रोशनी को मैं विरहिणी सल रही हूँ।।४

छल भरा है मानसूनी प्रेम तेरा,
प्रीत के पथ मैं सदा निश्छल रही हूँ।।५

कल्पना की डोर थामे आज ‘जीवन’,
सर्जना के पंथ पर मैं चल रही हूँ।।६

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

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