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विरह-वेदना

ओमप्रकाश सिंह
चंपारण (बिहार)

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आतुर विरह की स्वर बून्दो में भर
प्रियतम की अधरों पर बरस।
हे ऋतुओ की रानी विरह वेदना को कर सरस
पावस की अगणितकण बरस-बरस।
प्रिया है ब्याकुल-आतुर विरह की वेदना
बून्दो में भर तू प्रियतम की सूखी अधरों पर बरस।
कोयल की कुक-चातक की पिऊ-पिऊ आवाज
श्रावण की मास विरह -वेदना की।
असह्य आग तू कर सरस
विरह की वेदना कर सरस।
पावस की कण तू बरस बरस।
प्रिया की भीगी कपोलो
बिंदी सी बून्दो की चमक।
भीगी गात-अपलक नयन
विरह की वेदना में मगन।
प्रिया कर रही-
अपनी प्रियतम की मिलन की जतन।

परिचय :- ओमप्रकाश सिंह (शिक्षक मध्य विद्यालय रूपहारा)
ग्राम – गंगापीपर
जिला – पूर्वी चंपारण (बिहार)
सम्मान – राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak.com) द्वारा हिन्दी रक्षक २०२० राष्ट्रीय सम्मान
घोषणा पत्र : मेरे द्वारा यह प्रमाणित किया जाता है कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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