कोरोना ने दिखा दिया कि हम भारतीय सच में प्रेम की परिभाषा ठीक से समझते हैं। दया, करुणा, फ़र्ज़, लगभग हर जगह दिखे। नाम की चाह रखने वालों ने दान खूब किया और तस्वीरों के जरिये दिखाना चाहा कि वो मानवतावादी हैं। होड़ लग गई थी प्रदर्शन करने में। कुछ तो दान लेकर दान देते दिखे। पैकेट किसी के वाहबाही कोई दूसरा ले गया। लेकिन काम तो जोरदार हुआ। जरूरतमंद वंचित तो नहीं रहे। कुछ धूर्त भी निकले। ज़रूरत से ज़्यादा मुफ्त का माल जमा कर लिया। समूचे देश में एकता दिखी।
लॉक डाउन में तमाम महानुभाव बोर होते दिखे, उबासी लेते दिखे, छटपटाते दिखे, ग़मगीन दिखे, मलीन दिखे। क्योंकि उनके अंदर प्रेम नहीं था। क्रोध, ईर्ष्या, घमंड, ईगो, के कारण ऐसे लोग प्रेम न कर सके। माँ, पत्नी, भाई, बहन, पुत्र, पुत्री, मित्रों से दिल खोलकर बातें न कर सके। घर में कार्य करने वालों के प्रति दयालु न बन सके। प्रेमी प्रेमिकाओं ने अपार दुख झेले। मोबाइल डाटा की ऐसी कम तैसी कर डाली। दूर रहकर भी प्यार की मूलकता को समझने में असमर्थ रहे। मंचीय कवियों की हालत मजदूरों से भी बद्तर हो गई।
जो प्रेमपूर्ण थे वो मज़े में रहे, और जो अंदर से खाली थे वो दुखी अति दुखी दिखे। इन्होंने पुलिस के डंडे भी खाये और तिरस्कार भी। कुल मिलाकर प्रेम कोरोना पर भारी पड़ा। रिश्तों में मज़बूती आई। सामूहिक कष्टों ने सोचने पर बिवस कर दिया कि प्रेम ही जीवन का आधार है।
परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।
सम्मान – हिंदी रक्षक मंच इंदौर (hindirakshak।com) द्वारा हिंदी रक्षक २०२० सम्मान
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