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अपनी जड़ें खोदते हैं

अर्चना अनुपम
जबलपुर मध्यप्रदेश

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समर्पित- अंधी पश्चात्य संस्कृति के अश्व पर आरूढ़ भारतीय परिवेश को।

है वर्तमान की यही वेदना
मानव से मानवता दूर हुई।
अनुभव में दृष्टिभूत यही
की आज सभ्यता ढेर हुई।।

कल संम्पत्ति थे मात पिता
उनकी सेवा ही प्यारी।
और आज दे रहा बेटा है
अपने ही पता की सुपारी।।

पतियों से ज्यादा बाॅयफ्रेण्ड
अब पत्नी जी को भाते हैं।
पत्नी की साड़ी से अच्छी
गर्लफेण्ड के वस्त्र लुभाते हैं।।

बस कुछ पैसों का आ जाना
घर में कुत्ते पल जाना है।
कुछ बुरा तो नहीं पर इसपर
काहेका उतराना है?

इस फोरव्हिलर की दुनिया में
साइकल का कहां ठिकाना है?
भूले भक्ति अरु दान पुण्य
तीरथ में खूब उड़ाना है।।

रोगों से छुब्ध देह किंतु
मौजों में समय बिताना है।
असमय मृत्यु की ओर बढ़े
पर चुभता पूर्व जमाना है।।

पैदल चलने वाला तो अपनी
किस्मत को गरियाता है!
क्योंकि मित्रों और सखियों से
वह व्यंग्य बाण ही पाता है।।

है वर्तमान की यही वेदना
पैंसो पर मानव तौल उठा।
धर्मनीति की क्या विषात्?
सब स्वार्थ नीति पर आज मिटा।।

हम छोड़ चुके थे पहनावा
अब छोड़ रहे अपनी भाषा।
कुछ ने तो छोड़ दिया है देश
कुछ के मन आया यही क्लेश।
कि आज के बढ़ते इस समाज में
हमसे आगे कौन हुआ?।।

है वर्तमान की यही वेदना,
अंग्रेजी का राज हुआ।
‘स’ और ‘श’ का अन्तर छूटा,
हिन्दी का परिहास हुआ।।

हम भूल चुके हैं पूजा को,
फैशन का दौर चढ़ा है सर।
अब शाॅर्ट स्कट में हैं नारी
और कोर्ट सूट में सारे नर।।

जो कल तक रहते थे उघेल
वो ढँके मुंदे दिख जाएंगे
अर्ध देह के वस्त्रों में
नारी तन अति लुभाएंगे।।

धोती कुर्ता पहने जो भी
सब कहते यह देहाती है।
इस जीन्स-पेन्ट की दुनिया में
अब कौन पहनता खादी है?।।

ना प्रेम ही पूजा इश्क इबादत;
हुई मोहब्बत क्रेजी है।
है वर्तमान की यही वेदना
देशी पर रंग विदेशी है।।

नमस्कार अब हाय हुआ!
अलविदा हो गया बाय शाय।
पिता-डेड पापा और पा
मम्मी-मोम हो चली है माँ।।

दीदी ने ‘दी’ का रूप धरा!
भईया जी बन गये ‘‘बिगरब्रदर’’।
दाऊ,चाचा, मामा-अंकल,
मौसी मामी बुआ- आण्ट।
नानी-नाना,दादी-दादा ,
सब देख ग्रेण्ड हम हुए सण्ट।।

कल अलग नाम में रिश्ते रहते
एक ही घर के अंदर थे।
आज यकीन हुआ मुझको
हाँ; पूर्वज अपने बंदर थे।।

है वर्तमान की यही वेदना’
सम्बन्धों का हास् हुआ
पाश्चात्य का रंग चढ़ा यूँ,
अपनेपन का लाॅस हुआ।।

पर मैं कुछ सुनो सुनाती हूँ,
अपना अनुभव भी बतलाती हूँ।
इस देश ने जो युग देखे हैं,
वो अन्य भूमि में हैं दुर्लभ।
इस गुदड़ी में जो लाल हुए वो
अन्य कहीं भी हैं अलभ्य।।

कहां नरेन्द्र सा है विवेक?
और गांधी जी सा धैर्य कहां?।
लक्ष्मी बाई सा शौर्य कहो
मीरा सम हो एकाग्र जहाँ?

वेदों में जो आद्युनिकता है,
और रामचरित सी समरसता।
कबीर रहीम की देहाती बोली
में छिपी सारी शिक्षा।।

आखिर क्यों खुद को भूल चले
हम विदेश को पोसते हैं।
है वर्तमान की यही वेदना
हम अपनी जड़ ही खोदते हैं?।।

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परिचय :- अर्चना पाण्डेय गौतम
साहित्यिक उपनाम – अर्चना अनुपम
जन्म – २१/१०/१९८७
मूल निवासी – जिला कटनी, मध्य प्रदेश
वर्तमान निवास – जबलपुर मध्यप्रदेश
पद – स.उ.नि.(अ),
पदस्थ – पुलिस महानिरीक्षक कार्यालय जबलपुर जोन जबलपुर, मध्य प्रदेश
शिक्षा – समाजशास्त्र विषय से स्नात्कोत्तर
सम्मान – जे.एम.डी. पब्लिकेशन द्वारा काव्य स्मृति सम्मान, विश्व हिन्दी लेखिका मंच द्वारा नारी चेतना की आवाज, श्रेष्ठ कवियित्री सम्मान, लक्ष्मी बाई मेमोरियल अवार्ड, एक्सीलेंट लेडी अवार्ड, विश्व हिन्दी रचनाकार मंच द्वारा – अटल काव्य स्मृति सम्मान, शहीद रत्न सम्मान, मोमसप्रेस्सो हिन्दी लेखक सम्मान २०१९..
विधा – गद्य पद्य दोनों..
भाषा – संस्कृत, हिन्दी भाषा की बुन्देली, बघेली, बृज, अवधि, भोजपुरी में समस्त रस-छंद अलंकार, नज़्म एवं ग़ज़ल हेतु उर्दू फ़ारसी भाषा के शब्द संयोजन
विशेष – स्वरचित रचना विचारों हेतु विभाग उत्तरदायी नहीँ है.. इनका संबंध स्वउपजित एवं व्यक्तिगत है


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