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ऐसा तो सोचा न था

प्रो. डॉ. दीपमाला गुप्ता
इंदौर (म .प्र.)

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सोशल मीडिया पर दूरी से रिश्ते निभाते-निभाते आज की परिस्थितियों ने सच में भौतिक रूप से दूरी से रिश्ते निभाने के लिए मजबूर कर दिया है। हम खुद ही लोगों को सोशल मीडिया और व्हाट्सएप पर ही निपटा देते हैं, ऐसे में इन परिस्थितियों में दिल दिमाग में बेचैनी होना लाजमी है। हम सभी से जुड़े रहना चाहते हैं, लेकिन दूरी से हमारी यह सोच एक दिन ऐसे साकार रूप ले लेगी हमने सोचा भी न था हमने परिवार की इकाई को खुद छोटा बनाया जिसमें माता-पिता और सिर्फ उनके बच्चे आते हैं, दादा-दादी, नाना-नानी यह तो परिवार में शामिल ही नहीं माने जाते अगर हम आकर्षण के नियम की बात करें तो यह हमारी सोच का ही परिणाम है कि हम घर के बाहर पड़ोसी से भी दिल से नहीं जुड़ पा रहे हैं और आज स्थिति यह है कि १ मीटर की दूरी पर ही बात कर रहे हैं, ना अब रिश्तेदार और ना ही पड़ोसी घर आ रहे हैं और हम भी नहीं चाहते कि वह ऐसे समय में आए…
अब तो चिंता यह हो रही है कि कहीं बीमार हुए तो अपने भी मिलने नहीं आएंगे सोचिए ऐसा सामाजिक डर आज तक हमारी भारतीय संस्कृति पर हावी नहीं हुआ अपनों से सामाजिक होने के नाम पर हम डर रहे हैं और यह माहौल खबरें खौफनाक माहौल पैदा कर रही है ऐसे में अब इस माहौल के खात्मे के बाद हम सब को सोचना होगा कि हमारी सामाजिकता हमारा दायरा हमारी जिम्मेदारी हमारे देश समाज राष्ट्र और परिवार सभी के लिए बराबर है लेकिन क्या हम सभी इस जिम्मेदारी को निभा पा रहे हैं… सोशल डिस्टेंस तो अभी आया है… हमने तो यह दूरी बहुत पहले से सोशल मीडिया के आने के बाद ही बना ली थी क्यों हमें इतने व्यस्त हो गए कि अपनों को फोन भी नहीं लगा पाते व्हाट्सएप पर संदेश और फेसबुक पर जन्मदिन की बधाई देकर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री कर लेते हैं सामाजिक कार्य प्रणाली ने हर इंसान को इतना आत्म केंद्रित बना दिया है कि वह अपने बाद ही बाकी सब का नंबर लगाता है… आत्म केंद्रित होना ही हमारे समाज में इस तरह व्यवधान ला रहा है परिवार के लिए आत्म केंद्रित होना हमारी सोच को छोटा बना रहा है, समाज और राष्ट्र भी महत्वपूर्ण है,व्यक्ति समाज की सबसे बड़ी इकाई है… ये इकाई ही जिम्मेदारी ही हमारे समाज को सुदृढ़ बनाएगी ,लेकिन आत्म केंद्रित होना समाज के विकास में बाधा डालने जैसा है… हर काम पर जाने वाला व्यक्ति अपने काम को लेकर चिंतित है उसे काम भी करना है और घर भी चलाना है लेकिन सामाजिक दूरी ने उसे अंदर से तोड़ दिया है… उसकी चिंता को बढ़ा दिया है… लेकिन एक बात तो है इस दूरी के कारण आत्म चिंतन तो हर व्यक्ति करेगा कि अब सोशल मीडिया से नहीं भौतिक रूप से मिलकर ही रिश्ते निभाने होंगे,क्योंकि हमारी आने वाली पीढ़ी हमसे ही सीखेगी की रिश्ते साथ में रहकर बैठकर निभाए जाते हैं… फोन कॉल्स व्हाट्सएप और फेसबुक पर नहीं… उम्मीद है यह आलेख आपको आत्म चिंतन पर मजबूर करेगा कि जो सोशल डिस्टेंस हमें अभी करने के लिए बोला जा रहा है यह नियम तो हम बरसों से पाल ही रहे थे अब कौन सी नई बात है अब हम भौतिक दूरी को समझेंगे और पास होने की महत्ता भी समझेंगे यही यही है आत्म चिंतन का समय ….

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प्रधान सम्पादक
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प्रो. डॉ. दीपमाला गुप्ता
इंदौर म.प्र.


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