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विरहणी

विरहणी

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रचयिता :  माया मालवेन्द्र बदेका

बहुत बोलती थी, सासू मां। हर बात पर टोकना। उसके किसी भी काम को कभी प्रोत्साहित नही किया। बड़ी उलझन होती थी, विमला को। पति से विमला कोई शिकायत नही करती। वह जानती थी की वो अपनी मां के विरूद्ध कभी कुछ नहीं कहेंगे। पहले सामूहिक परिवार में सासू मां, ससुर जी, दादा ससुर जी, देवर, नंनद सबके साथ बहुत समय रही। अपने पति का तबादला दुसरे शहर में होने पर भी वह घर आती जाती रही। इस बार सासू मां विमला के पास आई थी। दस पन्द्रह दिन तो कुछ बोली नहीं, लेकिन एक दिन अपने बेटे को पड़ोस में बैठा देखकर, उन्होंने मौका देखकर धीरे से विमला से कहा, देख विमला अब बार बार बबुआ को छोड़ घर न आया कर और देख बच्ची भी पढ़ने लगी है। विमला को हंसी आ गई। वह सोचने लगी हमेशा परिवार की जिम्मेदारी बताने वाली सासू मां को एकदम क्या हो गया।
सासू मां विमला का चेहरा पढ़ रही थी, बरस बीते बहू को साथ रहते। अपनी बहू की निश्चलता जानती थी वह। बोली बहू तेरे ससुर भी शादी के बाद कभी उनके पड़ोस में बैठे रहते थे बस प्यार का नाम और क्षणिक सुख भोगने में वह ऐसे लीन हुए की में केवल बबुआ की मां बनकर रह गई। वह हतप्रभ थी। सासू मां ने ताड़ लिया था। उसके पति की फिसलन उसे पता नहीं चल रही थी।
वह जान गई, विरहणी मन की आंख से देखती है, सुनती है।

लेखिका परिचय :-
नाम – माया मालवेन्द्र बदेका
पिता – डाॅ श्री लक्षमीनारायण जी पान्डेय
माता – श्रीमती चंद्रावली पान्डेय
पति – मालवेन्द्र बधेका
जन्म – ५ सितम्बर १९५८ (जन्माष्टमी) इंदौर मध्यप्रदेश
शिक्षा – एम• ए• अर्थशास्त्र
शौक – संस्कृति, संगीत, लेखन, पठन, लोक संस्कृति
लेखन – चौथी कक्षा मे शुरुवात हिंदी, माळवी,गुजराती लेखन
प्रकाशन – पत्र पत्रिका मे हिन्दी, मालवी में प्रकाशन।
पुस्तक प्रकाशन – १ मौन शबद भी मुखर वे कदी (मालवी) २ – संजा बई का गीत
साझा संकलन – काव्य गंगा, सखी साहित्य, कवितायन, अंतरा शब्द शक्ति, साहित्य अनुसंधान
लघुकथा – लघुत्तम महत्तम
लघुकथा – सहोदरी
माळवी – मालवी चौपाल (मालवी)
विधा – हिंदी गीत, भजन, छल्ला, मालवी गीत, लघुकथा हिन्दी, मालवी व्यंग, सजल, नवगीत, चित्र चिंतन, पिरामिड, हायकू, अन्य विधा मे रचना!
सम्मान – झलक निगम संस्कृति सम्मान, श्रीकृष्ण सरल शोध संस्थान गुना द्वारा सम्मान, संस्कृत महाविधालय थाईलैंड द्वारा सम्मान, शब्द प्रवाह सम्मान, हल्ला गुल्ला मंच सम्मान रतलाम, मालवी मिठास मंच द्वारा, नारी शक्ति मंच जावरा, औदिच्य ब्राह्मण समाज,गुरूव ब्राह्मण समाज द्वारा सम्मानित, प्रतिकल्पा सम्मान जमुनाबाई लोकसंस्थान उज्जैन, द्वारा मालवी लेखन के लिए पांडुलिपी पुरस्कार, दैनिक अग्निपथ कवि साहित्यकार सम्मान, शुभसंकल्प संस्था इंदौर, शुजालपुर मालवी न्यास से सम्मानित, संवाद मालवी चौपाल, संजा और मांडना के लिए पुरस्कार
मुख्य ध्येय – हिंदी के साथ आंचलिक भाषा और लोककृति विशेष संजा को जीवंत रखना, बेटी बचाओ मुहिम मे मालवी हिन्दी मे पंक्तिया, संजा, मांडना संरक्षण पच्चीस वर्ष से अधिक भारत से बाहर रहकर हिंदी लेखन का प्रसार, आंचलिक बोली मालवी का प्रसार, मारिशस, थाईलैंड, हिंदी सम्मेलन में उपस्थिति व थाईलैंड में हिंदी गोष्ठी समूह में सहभागिता की।
संरक्षक – झलक निगम संस्कृति, संरक्षक शब्द प्रवाह
संस्थापक – यो माया को मालवो, या मालवा की माया।
अध्यक्ष – संस्कृति सरंक्षण
पुरस्कार प्रदत – “मालवा के गांधी” डॉ लक्ष्मीनारायण पांडेय “मालवा रत्न” स्मृति पुरस्कार!
निवासी – उज्जैन (मप्र)

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