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राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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गीता बाहर खड़ी आँसू बहा रही थी। सभी उसे मूक दर्शक बने निहार रहे थे। तभी एक कटु आवाज ने जैसे सारा सन्नाटा भंग कर दिया था।गीता, गीता अन्दर आ जाओ, वरना मुझसे बुरा कोई ना होगा। लोकेश उसे खींचते हुए अन्दर ले गया। और जमीन पर पटकते हुए उसे पीटने लगा। बाहर सिर्फ गली-गलोज और चिल्लाने की आवाज आ रही थी। अब तो यह हर रोज का काम हो गया था। पहले छोटी-छोटी बातों पर कह-सुनी होती, फिर हाथापाई होती। बीस साल पहले जब गीता विवाह करके इस घर में आई थी। तब किसने सोचा था कि यह रिश्ता इतना उलझ जाएगा? लोकेश को शराब पीने की बुरी लत तो शादी से पहले ही थी। पर शादी के बाद तो वह पूरी तरह से इस में डूबता जा रहा था। माता-पिता के समझाने का उस पर कोई असर नहीं होता था। वह अपने परिवार की एक नहीं सुनता था। जब भी कोई उसे समझाने की कोशिश करता, वह चुपचाप सुन लेता। गीता का पत्नी वाला पहनावा नहीं था। वह सारा दिन घर का कामकाज करती, अपने आप को व्यस्त रखती। पर जैसे ही साँझ होने लगती, उसकी रूह कांपना शुरू हो जाती। वही रोज की प्रताड़ना, मारपीट गाली-गलौज। अब उसे कोई राह दिखाई ना देती थी।
शादी से पहले सुमित उसे कितना प्यार करता था? उसके पीछे-पीछे घूमता रहता था। कभी उसके घर के सामने दुकान पर घंटों खड़ा होकर उसे निहारता रहता था। पर बोलता कुछ भी नहीं था। जब हम इकट्ठे कंप्यूटर सीखने जाते तो उसका ध्यान कंप्यूटर स्क्रीन पर कम मुझ पर ज्यादा होता था। मन में आता आज उसे फटकार दूंगी। पर शायद मैं भी मन ही मन उसे चाहने लगी थी। पर समाज के डर से कभी अपनी भावनाओं का इजहार नहीं कर सकी। लोकेश अपने माता-पिता के साथ मुझें देखने आया था। मेरे घर में पूरी चहल-पहल थी, सभी चाहते थे कि यह रिश्ता जुड़ जाए। लोकेश देखने में कुछ खास नहीं था। वह पढ़ा-लिखा भी कम था। सभी कह रहे थे कि गीता के भाग खुल जाएंगे अगर यह रिश्ता पक्का हो जाए। उसकी वेशभूषा भी साधारण सी थी। वह चालाक और समझदार दिखाई नहीं दे रहा था। सफ़ेद कमीज़ और काली पैंट में ठीक ठाक लग रहा था, उसके बाल घूंगराले थे।
माता-पिता मुझ पर जोर डाल रहे थे। बेटी लड़का अच्छा है, थोड़ा कम पढ़ा-लिखा है तो क्या? तुम तो बहुत पढ़ी-लिखी हो सब सम्भाल लोगी। पर पता नहीं मेरा मन इस रिश्ते के लिए हाँ नहीं करना चाहता था। उस दिन सुमित ने मुझे रास्ते में रोक लिया, गीता मैं कुछ कहना चाहता हूँ। मुझे उससे यह उम्मीद नहीं थी कि वह इस तरह मुझे रोक लेगा। पर मैं उसकी हिम्मत देखकर हैरान थी। हाँ, कहो क्या कहना चाहते हो? उसने एक पत्र मेरे हाथ में पकड़ा दिया और चला गया। उधर लुकेश के माता-पिता लगातार रिश्ता पक्का करने का दबाव हम पर बना रहे थे। और कह रहे थे कि एक बार आप हमारा घर-बार देख लो फिर निर्णय ले लेना।
पत्र खोलते समय मेरा मन धक-धक कर रहा था। प्यारी गीता, मैं तुम्हें दिल से चाहता हूँ। जबसे मैंने तुम्हें कॉलेज में देखा हैं। उसी समय सोच लिया था कि शादी तुम्हीं से करूँगा। तुम्हें नहीं पता कि मैं सोते जागते बस तुम्हारे ही सपनें देखता हूँ। तुम्हारा सुंदर, सलोना रूप मेरे मन में बस गया है। मुझे लगता है, तुम भी मुझे चाहती हो। तुम मेरे साथ बहुत खुश रहोगी। अपने सीने पर हाथ रखकर मेरे पत्र का जवाब देना। तुम्हारा अपना सुमित। मन में अजीबोगरीब हलचल हो रही थी। उस दिन पत्र को सीने से लगाए बिस्तर पर पड़ी रही।
उधर मम्मी-पापा को लोकेश का घर, कामकाज बहुत पसंद आ गया था। बड़ा घर नौकर-चाकर, गाड़ी। वह फूले नहीं समा रहे थे। हमारी बेटी राज करेगी, बस उन्हें मेरी हाँ का इंतजार था। पापा, बेटी हाँ कर दो इतना अच्छा घर दोबारा नहीं मिलेगा। पर मैं तो सुमित के ख्यालों में गुम थीं। उसका घर परिवार साधारण था। उसका छोटा-सा परिवार था, एक बहन थी जिसकी शादी को भी कई साल हो चुके थे। सुमित की कद-काठी कमाल की थी, पहनावा बिल्कुल अद्भुत। वह किसी की सुंदर लड़की के सपनों का राजकुमार हो सकता था। पर मेरा नहीं, मैं परेशान थी, एक तरफ वह लड़का जिसे माता-पिता मेरे लिए चुन रहे थे। दूसरी तरफ मेरे सपनों का राजकुमार जिसे मैं मन ही मन प्यार करती थी। मैंने सुमित के पत्र का उत्तर नहीं दिया, पता नहीं क्यों? आज मैं तुम्हारी खाल खींच लूँगा, लोकेश की आवाज में आज बहुत गुस्सा था। वह कह रहा था, कहाँ खोई रहती हो, महारानी? किसकी यादों में, नशे में धुत लुकेश की आँखे लाल हो रही थी। उसने गीता को पीटना शुरू कर दिया, वह पिटती रही। पर मुँह से एक भी शब्द नहीं निकला। उसे तो अब रोज अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि उसने क्यों माता-पिता की बातों में आकर हाँ कर दी थी। वह खुद से कह रही थी कि नियति को कौन बदल सकता है? कुछ चीजें नियति ही निर्धारित करती है। सुअवसर आकर हमारे सामने से गुजर जाते हैं। नियति को उसने स्वीकार कर लिया था। यही मेरी नियति है। वह पड़ी-पड़ी बड़बड़ा रही थी।
परिचय : राकेश कुमार तगाला
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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