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अभिलाषा मन की

निर्मल कुमार पीरिया
इंदौर (मध्य प्रदेश)

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तुम बनो परछाई मेरी,
संग चले हम उम्र भर,
या आईना ए रूह बनो,
निहारु तुमको उम्र भर.
श्याम घन, घटा ना होना,
उमड़ घुमड़ कभी हैं आती,
बन समीर निर्विघ्न तू बहना,
साँसों में बसना उम्र भर….

कुमुद कमलनी सी खिलना,
महकेगा जर्रा जर्रा,
बन पाखी कलरव तुम करना,
चहकेगा जर्रा जर्रा.
बदली धुंध सा ना होना,
नैन भृमित करती है जो,
बन वाचाल सरिता तू बहना,
खिल उठेगा जर्रा जर्रा…

श्रद्धा हो कामायनी की तुम,
महकी ग़ालिब ए नज्म भी
या छलकी खय्याम ए रूबाई,
बन साकी, बहकी मधुशाला भी.
तुलसी की रतना ना होना,
बने जोगी, पर अब जोग कहा,
बन ख्याल, उर चली आना,
ले कलम, गुने गीत “निर्मल” भी…

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परिचय :- निर्मल कुमार पीरिया
शिक्षा : बी.एस. एम्.ए
सम्प्रति : मैनेजर कमर्शियल व्हीकल लि.
निवासी : इंदौर, (म.प्र.)
शपथ : मेरी कविताएँ और गजल पूर्णतः मौलिक, स्वरचित और अप्रकाशित हैं


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