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लोकतन्त्र की मार

केशी गुप्ता
(दिल्ली)

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कैसे है मुहम्मद भाई? शर्मा जी ने दूर ही से आवाज लगाई। शुक्र है खुदा का भाई जान मुहम्मद भाई मुस्कुराते हुए बोले। बहुत अरसे से मुहम्मद भाई और शर्मा जी एक ही महौल्ले में रहते थे दोनों में अच्छी जान पहचान थी। गली से गुजरते दुआ सलाम होती ही थी . क्या खबर छपी है ? आज पेपर में शर्मा जी ने पूछा . भाई जान अब कहां कुछ खबर छपती है हर तरफ हाहाकार फैली है मगर मीडिया बिकाऊ हो चला है . सही कह रहे है आप . लोकतन्त्र सिर्फ नाम भर का है . जाने लोग किस ओर जा रहा है . राजनीति का स्तर गिर गया है. उठने वाली हर आवाज को दबा दिया जाता है . ईश्वर नेक राह दिखाए. आमीन मुहम्मद मुस्कुरा उठे.
शर्मा जी गली से निकल गए , आज उन्हे अपनी बेटी के ससुराल जाना था शादि का कार्ड देने .शादि की तारिख पास आ चूकी थी , उसी सिलसिले में बाजार से कुछ सामान लेने निकले थे . बैंकों में पैसा होते हुए भी अपने ही पैसे को बहुत ही एहतियात से खर्च करना पड़ रहा था . हर समय डर के साये में गुजरता जाने कब कोई नया कानून आ जाए . आदमी का सुकून तो खत्म ही हो चूका है मौजूदा हालात में , शर्मा जी को ठंडी हवा में भी पसीना आ रहा था . मंहगाई ने आसमान छू रखा है , हर तरफ से आम आदमी परेशान है . मुहम्मद ठीक ही कह रहा है खबर छपती ही कहा है , सब बिकाऊ है . लोकतन्त्र का कत्ल हो रहा है . इन्ही सब बातो में खोए शर्मा जी को पिछे से आती कार का हार्न सुनाई नही दिया और वह टक्करा गए . जान तो बच गई मगर टांग पर गिरने से चोट आ गई . लोगो की भीड़ इकट्ठी हो गई , सब कार चालक को बुरा भला कहने लगे . शर्मा जी बोले गलती मेरी है , मैं ही ख्यालों में गुम था . कार चलाने वाले लडके ने शर्मा जी से माफी मांगी और उन्हे कार में बिठा डाक्टर से पट्टी करवा घर छोड़ दिया .
मुहम्मद शर्मी जी को कार से इस हालात मे देख उनकी तरफ बड़े . अरे भाई जान ये कैसे हुआ सहार देते हुए पूछा . शर्मा जी दर्द भरी आवाज में बोले मुहम्मद भाई ये लोकतन्त्र की मार है .
मुहम्मद शर्मा जी को घर के अन्दर ले आए . पत्नी और बेटी उन्हे इस हालत में देख घबरा गए . भाभी जान आप घबराए नही , एक दो रोज में ठीक हो जांएगे शर्मा जी , तब तक आप हमें बताए क्या काम करना है . बिटिया की शादि का काम रोकने नही देंगें . राजनेता कितना भी खेल, खेल ले मगर दिलों के भाई चारे यूं ही खत्म नही होते मुहम्मद ने शर्मा जी की ओर देखते हुए कहा . हम बिटिया के चाचा जान है सभी खिलखिला उठे .

लेखक परिचय :- केशी गुप्ता लेखिका, समाज सेविका
निवास – द्बारका, दिल्ली


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