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अधिकार मांगता हूं

दीवान सिंह भुगवाड़े
बड़वानी (मध्यप्रदेश)

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सबको खिला कर मैं खुद भूखा रहता हूं
जल ना मिले तो पसीने से प्यास बुझाता हूं
आए कितनी भी मुसीबतें, हिम्मत न हारता हूं
टूट जाए कुटिया, उसमें ही जीवन गुजारता हूं।

धरती को माता मैं, पिता आसमान को मानता हूं
प्रकृति ही सब देती है, बस यह मैं जानता हूं
बैलों को मैं अपने भगवान जैसे पूजता हूं
ना मिले बैल तो मैं खुद हल खींचता हूं।

उधार लेकर मै खाद, बीज बोता हूं
दिन को आराम ना रात को सोता हूं
साल भर मेहनत कर, इतना न कमा पाता हूं
बिक जाते खेत मगर, ना कर्ज चुका पाता हूं।

अमीर ना बन सका, तो गरीबी में खुश रहता हूं
जिंदगी में आने वाले, मैं सब दुख सहता हूं
अपनी चीज का भाव तय करते, सब को देखता हूं
लेकिन फसल का मै, ना खुद भाव लगा सकता हूं।

खुद समर्थ हूं मै, सब कुछ कर सकता हूं
खेतों में काम करते, तेज धूप सहता हूं
बारिशों के पानी में, मै खुद भीगता हूं
फसल के लिए मै ठंडी रातों में जागता हूं।

ना कर्जमाफी और ना ही, मै ऋण चाहता हूं
सब्सिडी और ना सम्मान-निधि मांगता हूं
अपनी फसल का मै सही भाव चाहता हूं
खैरात नहीं मैं अपना अधिकार मांगता हूं।

परिचय :- दीवान सिंह भुगवाड़े
निवासी : बड़वानी (म.प्र.)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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