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दीप बनकर

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डॉ. बी.के. दीक्षित
इंदौर

दीप बनकर दिवाली मनायें सभी।
छोड़ खामोशी बाहर आयें कभी।

है सफाई ज़रूरी ,,,,मग़र ध्यान दो।
खाली हाथों को भी कोई काम दो।

दौर मंदी का है,तेज ना हम चलें।
साथ लेकर सभी को मिलकर बढ़ें।

छोड़ दें हम पतली प्लास्टिक पन्नियाँ।
इस बार बाटें,,,,,,,, धान गुड़ धनियाँ।

मिलावट नहीं,,,,,,,,, शुद्ध आहार हो।
पुरातन भारत का,,,,,,,,,,, बाज़ार हो।

रूप चौदस पर मिट्टी और उबटन रहे।
चौथ करबे की चमके,न विघटन रहे।

नृत्य घर घर में हों और भजन श्याम के।
मोहब्बत बिना,,,,,,,दीप किस काम के।

 

परिचय :- डॉ. बी.के. दीक्षित (बिजू) आपका मूल निवास फ़र्रुख़ाबाद उ.प्र. है आपकी शिक्षा कानपुर में ग्रहण की व् आप गत ३६ वर्ष से इंदौर में निवास कर रहे हैं आप मंचीय कवि, लेखक, अधिमान्य पत्रकार और संभावना क्लब के अध्यक्ष हैं, महाप्रबंधक मार्केटिंग सोमैया ग्रुप एवं अवध समाज साहित्यक संगठन के उपाध्यक्ष भी हैं।


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