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दीपावली गिफ्ट

डॉ. विनोद वर्मा “आज़ाद” 
देपालपुर

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हेमराज वर्मा की नई-नई शादी हुई थीमोहन नागर के मकान में किराए से रहते थे। स्टेट बैंक में कैशियर के पद पर कार्यरत वर्मा जी, सहज और सरल व्यक्ति होने के साथ मन के साफ और नेकदिल इंसान थे।पटलन बाई ने उनको भाई बनाया था। सन्ध्या समय पटलन बाई, मोहनदादा, भाभी, शोभा, डीपी वर्मा, हरीश, सुनील हम सब वर्मा जी के कमरे पर इकट्ठा हो जाया करते थे। खूब हंसी-मजाक होती थी, अक्सर मोहन दादा को हम टारगेट करते थे। उनके और भाभी के बीच अक्सर झड़प होती रहती थी लेकिन वह भी हास्य रूप में। मोहन दादा को मावा खाने का शौक था। वो जब भी नागर मिष्ठान से मावा खरीदकर लाते तो भाभी उन्हें हमारे इकट्ठा होने के बाद छेड़ देती कहती- “विनोद भैया ई झूठ बोली के मावो लाय ने बैठी के चट करि जाय, ने इनको बहानों कय की म्हारे दस्त लगी गया।” तो तमारे खाने से मना कुण करे, खाव पर बहाना करि के क्योव खाव? बस ! दोनो के बीच झड़प शुरू हो जाती और हम उनके बीच मिर्च- मसाला डालना शुरू कर देते थे। हमारा पक्ष हमेशा भाभी की ओर रहता था। उनके बेटे और बेटी भी हमारे साथ हो जाते, अन्तमें मोहन दादा”मैदान छोड़”बन जाते। हमारा चाय नाश्ता प्रतिदिन का फिक्स था। मैं, डीपी, गोवर्धन, रामेश्वर नागर, समद चुलबुल और वर्मा जी प्रति शनिवार बाल मंदिर जिसका सन्चालन क्षीरसागर मेडम करती थी, में काव्य गोष्ठी किया करते थे। हम सब साथियों का काफी जुड़ाव रहता था। हमने एक “फ्रेंड्स क्लब” बना रखा था जिसके माध्यम से हम अक्सर सांस्कृतिक कार्यक्रम बाजार चौक स्थित हनुमान मंदिर पर किया करते थे। बहुत सारे नाटक भी हम उस स्थान पर कर चुके थे। हम ही महिलाओं का रोल भी करते थे। काव्य गोष्ठी के लिए हमने”युवाम” नामक संस्था बना रखी थी। खेलकूद, क्रिकेट, कबड्डी के लिए “सहपाठी क्रिकेट क्लब का गठन हमने किया था। क्रिकेट टूर्नामेंट व मैत्री मैच हम अक्सर गांधीनगर में सक्सेना बन्धुओं हातोद में मिलिंद राहतेकर बेटमा में पृथ्वीराज चौहान, गौतमपुरा में अरविंद जायसवाल और केसूर में शेरसिंह की टीम के बीच खेला करते थे, मैं सुशील दोषी स्टाइल में कमेंट्री भी किया करता था। क्रिकेट का पहला टूर्नामेंट राजेंद्र भटनागर द्वारा आयोजित किया गया था, जहां आज श्री २४ अवतार मंदिर धाम स्थापित हो गया है। ४ मैच होने के बाद हम फाइनल में पहुंचे थे। राजेन्द्र ने फाइनल जितने के लिए टीम में दूसरी टीम के अच्छे खिलाड़ियों को रख लिया। हमने विरोध किया कि ये बेईमानी नही चलेगी तो राजेन्द्र ने टूर्नामेंट कैंसल कर दिया हम रेशमकेन्द्र बेटमा नाका स्थित उसके घर पर पूरी टीम के साथ पहुंच गए, उसके पिताजी रेशम केन्द्र में अधिकारी थे, उनको हमने रूल्स बताए और कहा कि ये नही खेल रहे तो हम स्वतः ही विजेता हो गए है, हमे कप दीजिये सच्चाई हमारा गहना रही है सच बोलना और सफल होना एक मंत्र बचपन से ही, बस! कप लेकर हम नाचते-गाते घर आये।
हायर सेकंडरी की परीक्षा हो चुकी थी। हमारे कार्यक्रम भी चल रहे थे। इस बार हमें चंदा अच्छा मिला था। ४३ रुपये से हमारा सारा खर्च निकल जायेगा। तखत तो मांगकर लाये थे, हम सब के घर से मां की पुरानी साड़ियां ले कर आये और स्टेज सजा लिया था। एक रेशमी परदा रिंग वाला जो रस्सी खिंचने पर बन्द चालू हो जाता था, वह तो वाचनालय से मिल जाता था। लाउडस्पीकर वाला दो चिलम बांस पर बांधकर लटका देता था, हम कलाकार माइक के पास आकर संवाद बोलते थे। नाटक में आज एक तलाक प्रकरण चल रहा था। मैं वकील की भूमिका में था, डीपी महिला बन घूंघट से जज की ओर निहार रहा था। जज गोवर्धन ने नाक पर सल चढ़ाकर बड़े से गांधी चश्मे …..२ घण्टे तक नाटको के माध्यम से दर्शकों का मनोरंजन किया।
रिजल्ट आ गया था, मेरे अंक विद्यालय में सबसे ज्यादा आये थे कुल २९ छात्र थे इनमें से गणित के ८ में से ७ छात्र हम और विज्ञान वाले सभी छात्र पास हो गए थे। केवल दिलीप शुक्ला ही रसायन शास्त्र में फेल हुआ था। उस समय शासन ने प्रादर्श प्रश्न की पुस्तक निकाली थी जो पहली बार हमारे बीच आई थी। पर फिर भी हमने उसको रट देने के साथ कॉपियों में लिखे हुए प्रश्नोत्तरों पर ही विश्वास किया था। बस ! उसके बाद से ही गाइडों का आना प्रारम्भ होकर हमारी नस्लों पर कुठाराघात होना प्रारम्भ हुआ।
मैं मामाजी के यहां इंदौर टाइपिंग सीखने चला गया, उस वक्त टाइपिंग पर काफी जोर चल रहा था। बड़े मामाजी रमेशचन्द्र ढालिया पूरे परिवार को कठोर अनुशासन में रखते थे। हम बच्चे तो बहुत डरते थे, पर वो हमसे प्रेमभी बहुत करते थे। विमल टाइपिंग जवाहर मार्ग पर हिंदी और पाठक वाले के यहां अंग्रेजी टाइपिंग सीखना शुरू किया। पॉलिटेक्निक से सिविल में डिप्लोमा और आई. टी.आई. से ३ विषयों पर ट्रेनिंग के लिए चयन हुआ पर शिक्षक पिता की तनख्वाह बहुत कम होने की वजह से मैं यह न कर टाइपिंग के द्वारा भाग्य संवारने में लग गया। टाइपिंग के साथ शिकारपुर धर्म शाला के पीछे एक सिलाई कार खाने पर सिलाई करने जाने लगा। वहां से दोपहर में भोजन करने मामाजी के यहां आ जाता फिर वापस कारखाने सिलाई करने चला जाता रात्रि ८ बजे तक वापस सिलावटपुरा आ जाता भोजन करता और कुछ बच्चों को ट्यूशन पढ़ाता फिर सो जाता। उनमें से एक मौसेरी बहन बी. कॉम.हो गई थी। एक घटना- मेरे औऱ छोटे मामाजी गोपाल के पास इसी बहन ने कुछ पैसे देख लिए, उसने जुगत भिड़ाई और बोली गोपाल तू, भैया और मैं अपनतीनी सर्कस देखने चला भोत अच्छो है “ग्रेट रोमन सर्कस” सब अपना-अपना पैसा दांगा। मैं कभी मना नही करता, मामाजी भी तैयार हो गए हम तीनों सायकिल से गये चिमनबाग। वहां जाकर मैने मामाजी को पैसे दे दिए, फिर मामाजी ने अनिता से कहा-ए चिलम ला पइसा दे तो उसने मुंह बनाते हुए कहाँ की काँ है म्हारा पास पायसा ! तो मामाजी बोले चल भग याँ से झूठ बोली के अएगी। तो वह ब्लैकमेलिंग पर उतर आई, बोली वा म्हारे सर्कस नी दिखाव तो अभी छोड़ी के आव..
फिर उस युति भिड़ाने वाली बहन को भी सर्कस दिखाया और घर आये कलपते हुए की चिलम की वजह से हमारे कय भी खाने के नी मिल्यो। घर आकर उसी बहन ने सबके बीच हम दोनों की खूब हंसी उड़ाई की मेने भैया के ने गोपाल के बेवकूफ बनय दिया। मुझे एक बात आज भी खटकती है कि किसी झुंड वाले या समूह में रहकर किये जाने वाले कामों में बच्चों को भेजना ठीक नही होता। मैं १८ साल का था सिलाई कारखाने पर बहुत ही वाहियात और घटिया किस्म की नॉनवेजी बातें होती थी, प्रतिदिन सभी जगह पैदल आना-जाना और कारखाने पर घटिया बातें ! पहली बार ऐसे माहौल में गया और मैं १५ दिन में ही बीमार पड़ गया। टाइफॉयड हो गया। घर आ गया। ठीक होने पर टाइपिंग के पैसे लेकर मैं वापस इंदौर आ गया। क्लॉथ मार्किट अस्पताल वाले घर से मैं सिलावट पुरा वाले घर जा रहा था, रास्ते मे लाबरिया भेरू चौराहे पर इमली के पेड़ के नीचे एक साधु बैठा था, उसने मुझे इशारा करके अपने पास बुलाया औऱ बोला बच्चा तुम बहुत तरक्की करोगे बच्चा ! तुम्हे राम जी के दर्शन होंगे ! बैठों, मैं बैठ गया। उसने फिर मुझसे जमीन पर से एक कंकड़ उठाने का कहा और अपने हाथ मे लेकर मुट्ठीबांध कर मुझे पुनः अपने हाथ मे रख मुट्ठी बंधवाकर कंकड़ देकर कहा कि यह मुंह मे डाल लो, मैंने वैसा ही किया बन्द मुट्ठी मुंह के ऊपर खोलकर मुंह मे डाला तो मुझे मीठा लगा, फिर मुझसे उस साधु ने कहा चबा लो, मैने चबाया तो मिश्री जैसा लगा, फिर टाइपिंग फीस के पन्द्रह रुपये की बत्ती उस साधु ने दे दी। मुझे उस समय कुछ समझ नही आया पर पन्द्रह रुपये आज के समय के तो हजारों के बराबर थे। मुझे उस रात उस साधु का चेहरा दिखता रहा, नींद नही आई, यह सोचकर कि बाई ने एक-एक पैसा जुटाकर मुझे फीस के पैसे दिए और इस साधु ने मुझे लूट लिया।
सिलाई कारखाने जाकर देखा तो बाहर सिलाई किया हुआ सारा माल लोड हो रहा था ट्रक में। मैने कटर मास्टर और चेकर से पूछा- ‘यह माल कहाँ जा रहा है तो बताया बॉम्बे जाएगा और वहां से अमेरिका। मुझे खुशी हुई कि मेरा सिलाई किया गया माल विदेश जा रहा है। पर मुझे तो हिसाब करना था और सिलाई बन्द करना थी। मुझे चेकर बोलने लगा कि तुम कुछ दिन और रुक जाओ तो दीपावली का गिफ्ट मिल जाता! सेठ हर दीपावली पर गिफ्ट देते है, मैने कहां नही, मैं ऐसी जगह काम नही कर सकता, मैने जीवन मे कभी ऐसी बातें करते किसी को नही सुना यहां तो बस ! हिसाब किया और वापस पेमेंट लेकर मामाजी के यहां आ गया। मैं कुछ दिनों के बाद वापस घर आया तो वर्मा जी को मेरे पॉलिटेक्निक की पढ़ाई का खर्च पिताजी द्वारा उठाने में असमर्थता जताने का मलाल था। मैने उनको बताया- ‘कि मैं सिलाई करने नही जा रहा और चेकर ने दीपावली गिफ्ट की बात मुझे बताई थी पर मुझे चाह नही’ गिफ्ट की। मैं तो ट्यूशन से ही खर्च निकाल लूंगा। उन्होंने मुझसे एक आवेदन बनवा कर रख लिया।
कुछ दिनों बाद मुझे बस पर चिट्ठी भिजवाकर वापस घरबुलवा लिया। बुलाकर कहा- ‘बापट सा. से बात हो गई है, तुम कल से स्टेट बैंक में टेम्पररी क्लर्क/केशियर की नौकरी ज्वॉइन कर लो। नासिक से नोट आये है ५,१० के! उनकी गिनती चल रही है। गणित विषय के कारण तुमको मौका मिला है और तुम्हारे लिए मेरी ओर से यह दीपावली गिफ्ट भी है।

 

परिचय :- डॉ. विनोद वर्मा “आज़ाद” सहायक शिक्षक (शासकीय)
शिक्षा : एम.फिल.,एम.ए. (हिंदी साहित्य), एल.एल.बी., बी.टी., वैद्य विशारद पीएच.डी
निवास – इंदौर जिला मध्यप्रदेश
स्काउट – जिला स्काउटर प्रतिनिधि, ब्लॉक सचिव व नोडल अधिकारी
अध्यक्ष – शिक्षक परिवार, मालव लोकसाहित्य सांस्कृतिक मंच म.प्र.
अन्य व्यवसाय – फोटो & वीडियोग्राफी
गतिविधियां – साहित्य, सांस्कृतिक, सामाजिक क्रीड़ा, धार्मिक एवम समस्त गतिविधियों के साथ लेखन-कहानी, फ़िल्म समीक्षा, कार्यक्रम आयोजन पर सारगर्भित लेखन, मालवी बोली पर लेखन गीत, कविता मुक्तक आदि।
अवार्ड – CCRT प्रशिक्षित, हैदराबाद (आ.प्र.)
१ – अम्बेडकर अवार्ड, साहित्य लेखन तालकटोरा स्टेडियम दिल्ली
२ – रजक मशाल पत्रिका, परिषद, भोपाल
३ – राज्य शिक्षा केन्द्र, श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
४ – पत्रिका समाचार पत्र उत्कृष्ट शिक्षक सम्मान (एक्सीलेंस अवार्ड)
५ – जिला पंचायत द्वारा श्रेष्ठ शिक्षक सम्मान
६ – जिला कलेक्टर द्वारा सम्मान
७ – जिला शिक्षण एवम प्रशिक्षण संस्थान (डाइट) द्वारा सम्मान
८ – भारत स्काउट गाइड संघ जिला एवं संभागीय अवार्ड
९ – जनपद शिक्षा केन्द्र द्वारा सम्मानित
१० – लायंस क्लब द्वारा सम्मानित
११ – नगरपरिषद द्वारा सम्मान
१२ – विवेक विद्यापीठ द्वारा सम्मान
१३ – दैनिक विनय उजाला राज्य स्तरीय सम्मान
१४ – राज्य कर्मचारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१५ – म.प्र.तृतीय वर्ग शासकीय कर्मचारी अधिकारी संघ म.प्र. द्वारा सम्मान
१६ – प्रशासन द्वारा १५ अगस्त को सम्मान 
१७.- मालव रत्न अवार्ड २०१९ से सम्मानित।
१८ – श्री गौरीशंकर रामायण मंडल द्वारा सम्मान।
१९ – “आदर्श शिक्षा रत्न” अवार्ड संस्कार शाला मथुरा उ.प्र.।
२० – दो अनाथ बेटियों को गोद लेकर १२वीं तक कि पढ़ाई के खर्च का जिम्मा लिया।


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