राकेश कुमार तगाला
पानीपत (हरियाणा)
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पापा आप हर बात में अपनी सलाह क्यों देते रहते हैं? आपका अपना ही अलाप बजता रहता है। तभी दूसरा बेटा भी आ गया। पापा हर मामले में अपनी टाँग अड़ाना जरूरी है। शर्मा जी, चुपचाप दोनों बेटों की बातें सुन रहे थे, जो उन्हें किसी शूल की भाँति चुभ गई थी। यह कोई पहली बार नहीं हो रहा था। अब तो हर रोज का यही काम था। सुबह से ही घर में कलह शुरू हो जाता था। शर्मा जी ने बड़े जतन से घर की एक-एक चीज जोड़ी थी। वह किस तरह उन्हें बर्बाद होते देख सकते थे। बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाने के लिए उन्होंने अपनी सारी जमा-पूँजी खर्च कर दी थी। पत्नी के साथ मिलकर उन्होंने अपनी सारी जिम्मेदारियों का निर्वाह समय पर पूरा किया था। पर उनसे कहीं ना कहीं भारी चूक हो गई थी। जो आज अपने ही परिवार में उन्हें उपेक्षा झेलनी पड़ रही थी। रोज की तरह, वह सुबह पार्क की तरफ चल पड़े। गेट पर ही मेहता जी और उनका बेटा मिल गए। उन्होंने एक-दूसरे का अभिवादन किया, बेटे ने झुक कर शर्मा जी के चरण स्पर्श किए। वह अपने पापा को यह कह चल पड़ा, पापा समय पर दवाई ले लेना। अच्छा पापा, अब मैं चलता हूँ। मेहता जी जैसे अपने लाल को मन ही मन आशीष दे रहे थे। मेहता जी आप तो बड़े भाग्यवान हैं, जो आपका परिवार आप पर जान छिड़कता है। क्यों शर्मा जी ऐसा भी क्या खास है? शर्मा जी बिल्कुल गंभीर हो गए, उन्होंने इतना ही कहा सब आप जितने भाग्यशाली नहीं होते। मेहता जी उनकी पीड़ा अच्छी तरह समझ रहे थे। शर्मा जी क्या आप भी अपने परिवार में सम्मान पाना चाहते हैं? पर यह बड़ा गूढ़ रहस्य है, इसकी फीस लगेगी। ठीक है मेहता जी आपकी फीस मंजूर है। और दोनों एक साथ हँस पड़े। शर्मा जी हम जिंदगी के आखिरी पड़ाव पर हैं पता नहीं कब भगवान का बुलावा आ जाए? उम्र के इस दौर में हमें अधिक धैर्य की आवश्यकता है। मैं अपने बच्चों को किसी काम के लिए नहीं रोकता हूं। वह जैसे चाहे अपनी जिंदगी जिए। उन्हें अपने अच्छे बुरे का ज्ञान है। ना ही मैं उन्हें कोई सलाह देता हूं। पर मेहता जी आपके बच्चे तो आपकी सलाह के बिना कोई काम नहीं करते। यही तो रहस्य है। जब बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें टोका-टाकी पसंद नहीं होती। कई बार वह गलतियाँ करते हैं, पर सीखते हैं। वह जब भी मुझसे सलाह माँगते। मैं उन्हें सलाह देता हूँ, पर आखिर निर्णय उन्हीं पर छोड़ देता हूं। अब उन्हें विश्वास हो गया है कि पापा की सलाह उनके लिए हमेशा सही होती है। अब आप भी इस रहस्य को अपनाए, सब ठीक हो जाएगा। शर्मा जी ने उसी दिन से परिवार के कामों में रोक-टोक पूरी तरह बंद कर दी। परिवार को धीरे-धीरे पापा की जरूरत महसूस होने लगी। कुछ ही महीनों में इतना बदलाव आ गया। उन्हें यकीन ही नहीं हुआ, अब वह खुश थे। शर्मा जी मेरी फीस, रहस्य काम आ रहा है यह नहीं। सच, मेहता जी आप के रहस्य ने तो कमाल कर दिया है। आपको फीस के रूप में क्या चाहिए? आपका हँसता चेहरा शर्मा जी। दोनों खिलखिला कर हंस पड़े।
निवासी : पानीपत (हरियाणा)
शिक्षा : बी ए ऑनर्स, एम ए (हिंदी, इतिहास)
साहित्यक उपलब्धि : कविता, लघुकथा, लेख, कहानी, क्षणिकाएँ, २०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।
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