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रिश्तों की मृत्यु

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विवेक सावरीकर मृदुल
(कानपुर)

रिश्तों की मृत्यु
अचानक नहीं होती
वो तिल तिल कर होती रहती है
मगर हमें इसका पता
हमेशा देर से चलता है
सुदूर जा पहुंचे दोस्त
मिलते हैं कभी फेसबुक पर
सुख,दुख,पैसा-लत्ता,
नौकरी-बिजनैस, बच्चे-बहू और
यहां तक कि माँ-बाप भी
आते जाते हैं बातों में
रस बढ़ाते, प्यार जताते,
नाज उठाते कितने ही क्षण
और फिर पसरने लगती है
ऊब भरी सांझ
अपनेपन का अनमना
होना देखते हैं हम
पर समझ नहीं पाते
कि  मुरझा चुकी है
रिश्ते की बेल
कभी कहीं फिर
टकराने पर
“तुम तो आते ही नहीं…
भूल गये क्या ऐं ऐं”
कहकर रिश्ते के मृतसम
शरीर पर फूंका करते हैं
थोड़ी-मोड़ी प्राणवायु
और समय निकाल लेते हैं
मन को तक नहीं जानने देते
कि रिश्ता मर चुका है बहुत पहले ही
यह तो केवल उसकी याद की देह है

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लेखक परिचय :-  विवेक सावरीकर मृदुल
जन्म :१९६५ (कानपुर)
शिक्षा : एम.कॉम, एम.सी.जे.रूसी भाषा में एडवांस डिप्लोमा
हिंदी काव्यसंग्रह : सृजनपथ २०१४ में प्रकाशित, मराठी काव्य संग्रह लयवलये,
उपलब्धियां : वरिष्ठ मराठी कवि के रूप में दुबई में आयोजित मराठी साहित्य सम्मेलन में मध्यप्रदेश का प्रतिनिधित्व, वरिष्ठ कला समीक्षक, रंगकर्मी, टीवी प्रस्तोता, अभिनेता के रूप में सतत कार्य, हिंदी और मराठी दोनों भाषाओं में समान रूप से लेखन।
संप्रति : माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल में सहायक कुलसचिव।

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