नितिन राघव
बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)
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आपने बहुत से पेड़ों को घरों में, मोहल्लों में और सड़कों के किनारे खड़े अवश्य देखा होगा। प्रत्येक पेड़ का अपना कुछ न कुछ महत्व होता है। इस कहानी में मैने एक मोहल्ले में खड़े नीम के पेड़ के माध्यम से पेड़ों के महत्व को बताने का प्रयास किया है। गांव सलगवां के राघव मोहल्ले में एक विशाल नीम का पेड़ था। इसके अलावा पूरे गांव में कोई पेड़ न था। उसकी बनावट एक छाते कि तरह थी। लोग गर्मियों में उसकी छाया का आनंद लेते थे। बरसात में भी लोग उसके नीचे खड़े हो जाते थे और वह लोगों को विशाल गोवर्धन पर्वत की तरह ही बरसात से बचाता। लोग उसके नीचे रोज पत्ते भी खेला करते थे। मोहल्ले के बच्चे भी अपने दैमिक खेल उसके नीचे खेलते थे। कुछ बुजुर्ग उसकी टहनियों से दातुन करते थे। इस प्रकार बच्चे, बड़े और बुजुर्ग लोगों को वह कुछ न कुछ देता था। ये लोग पेड़ को पसंद करते थे। परन्तु मोहल्ले की महिलाएं उस पेड़ से खुश नहीं थी। इसका एक मात्र कारण यह था कि उस पेड़ के पत्ते सम्पूर्ण मोहल्ले, घरों के आंगन और छतों पर फैल जाते थे। जब महिलाएं झाडू लगाती थी तो वह पेड़ को तरहा तरहा कि गालियाँ देती और अपने अपने पतियों से पेड़ को कटवाने की मांग करती परन्तु उनके पति उन्हें यह कहकर समझा देते कि पेड़ों को कटवाने से हमें काफी नुकसान हैं तब वह कुछ समय के लिए मान जाती परन्तु अब पतझड़ आ चुका था। पत्ते और ज्यादा गिरने लगे। एक स्थिति ऐसी आ गई कि महिलाएं झाडू लगाकर हटती न कि दोबारा पहले से ज्यादा पत्ते गिर जाते। उनके लिए पानी सर से ऊपर हो चुका था। मोहल्ले कि महिलाओं ने अबकी बार आपस में सलाह कर ली कि वे एक जुट होकर पेड़ को कटवाने की मांग करेगी और किसी की नहीं मानेगी। उन्होंने इसी नीम के पेड़ के नीचे एक सभा आयोजित की जिसमें मोहल्लै के सभी लोगों को बुलाया गया। सभी लोग पेंड़ के नीचे इकट्ठा हो गए। एक तरफ महिलाएं और दूसरी तरफ अन्य लोग बैठ गए। महिलाओं ने पेड़ को कटवाने की मांग की परन्तु पुरुषों ने उन्हें समझाने का प्रयास किया। इस बार महिलाओं ने साफ साफ कह दिया यदि उनकी मॉग पुरी नहीं कि गई तो वे सब अपने घरों का कोई भी काम नहीं करेगी। पुरुषों ने सोचा कि ये एक साथ हैं और किसी कि बात नहीं मान रही है। घर जाने के बाद ये शांत हो जाएगी और फिर समझाने पर समझ जायेगी। पुरुषों ने भी उनकी माँग स्वीकार नहीं की। वे उठकर चले गए। सभा समाप्त हो गई। रात को किसी महिला ने न खाना बनाया न ही अन्य काम किये। मोहल्ले के सभी लोगों को भूखा ही सोना पड़ा। अब सुबह हुई। सुबह भी बही हाल महिलाओं ने कोई काम नहीं किया। पुरुषों को सुबह भी भूखा ही रहना पडा। परन्तु अब भी मोहल्ले का कोई भी पुरुष पेड़ कटवाने को तैयार न था परन्तु महिलाओं द्वारा कोई भी काम न करने के कारण सभी परेशान थे। इस बार महिलाओं को एक बार फिर समझाने के लिए पुरुषों ने सभा आयोजित की। सभा में नीम के पेड़ के वैज्ञानिक महत्व को समझाने के लिए कुछ प्रबंधन किए गए। सभी मोहल्ले के लोग पुनः पेड़ के नीचे एकत्रित हो गए। इस बार भी महिलाओं ने अपनी बात पहले रखी और वहीं मांग दोहराई। अब पुरुष पक्ष ने महिलाओं से निवेदन किया कि पहले वे उनकी बात भी सुन ले। एक बुजुर्ग खड़ा हुआ और बोला तुम पैड़ को कटवाना चाहती हो। क्या तुम जानती हो मोहल्ले में पेड़ के फायदे क्या है? बुजुर्म ने बताया इस पेड़ पर खरखुसटा रहते हैं जो रात में चोर आने पर हमे आगहा कर देते हैं। उनकी यह बात सुनकर सब हँसने लगे। अब एक नवयुवक छोटू खड़ा हुआ जिसने पेड़ों के बारे में काफी पढाई की थी। वह बोला कि पेड़ हमे आक्सीजन देते हैं जिसका उपयोग हम और सभी पशु पक्षी सांस लेने में करते हैं। पेड़ पक्षियों को घर देता है और वही पक्षी अनेक प्रकार के कीटों को खाकर हमारी फसलो कि रक्षा करते है, नीम का पेड़ और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि नीम में एन्टी फंगल के गुण होते हैं। ये विभिन्न प्रकार के फंगल रोगों से हमारी रक्षा करता है, इसकी पत्तियों और छाल से दवाईयां बनती है जो कई रोगों में काम आती है। नीम की छाल का प्रयोग वैद्य लोग फोडा और फुंसी की दवाई बनाने में करते हैं। आज कल टेक्नोलॉजी का जमाना है इसलिए पुरुषों ने नीम को बचाने के लिए ‘टैक्नोलॉजी का भी प्रयोग किया। दूसरा नवयुवक गोलू ने अपने मोबाइल पर यूट्यूब खोला और नीम के पेड़ से संबंधित वैज्ञानिक फायदे सुनाए और दिखाए। इस. प्रकार पुरुष पक्ष ने नीम को बचाने का हर संभव प्रयास किया परंतु फिर भी महिला पक्ष न समझा और जिदद पर अड़ा रहा। महिलाओं ने वही मांग फिर से दोहराई यदि पेड़ को नहीं काटा गया तो वह घर का कोई काम नहीं करेगी। अब पुरुष पक्ष भी क्या कर सकता था। वे भी महिलाओं के सामने निसहाय थे। सभी लोग पिछले दो वक्त से भूखे थे। इधर बच्चे भी भूख से परेशान थे। अतः पुंरुषों ने बच्चों का ख्याल करते हुए महिला से हार मान ली और पेड़ कटवाने को हामी भर दी। अब पुरूष पक्ष में उदासीनता और महिला पक्ष में खुशी की लहर दौड़ गई। पुरुषों ने उदास मन से तीसरे नवयुवक दीपू को लकडहारो को बुलाने के के लिए भेजा। लकड़हारे आये और पेड़ काटने लगे। पेड़ को कटते देखने वाली पुरुषों की आंखें नम हो गई और महिलाओं की आंखें जगमगा उठी। देखते ही देखते लकडहारो ने पेड़ को काट दिया और उसे टरक में भरकर ले गए और गांव पेड़ हीन हो गया। अब सब लोग अपने अपने घर पहुंचे। महिलाओं ने बड़ी खुशी के साथ पहले खाना बनाया और फिर अन्य काम किए। पेड़ कटवाकर पुरुषों को खाना तो मिल गया परंतु उससे उनका पेट सन्तुष्ट था मन नहीं। लगभग एक साल बाद मोहल्ले के बच्चों को अचानक बिमारीयो ने घेर लिया। किसी को कुछ और किसी को कुछ बिमारी ही गई। बिमारीयो के चलते बच्चों को बड़े-बड़े अस्पतालों में भर्ती कराया गया। महिलाएं बच्चों के लिए बहुत दुखी थी। उन्हें अस्पताल में कई दिन गुजर गए। डॉक्टरों ने बच्चों को तो ठीक कर दिया। परन्तु जब एक डॉक्टर ने बच्चों की बिमारी का कारण बताया तो महिलाओं की आंखें खुल गई। डॉक्टर ने कहा कि ऐसी बीमारियां तब होती है जब किसी स्थान पर लम्बे समय से कोई पेड़ न होने पर वहां की हवा प्रदूषित हो जाती है और सांस के साथ शरीर में पहुंचकर बिमारीयों को जन्म देती है। सब लोग अस्पताल से घर आ गए। अब तीसरी बार महिलाओं द्वारा सभा बुलाई गई। महिलाओं ने पुरुषों से माफी मांगी और अपनी गलती स्वीकार कि। महिलाओं ने अपनी गलती का प्राशचित करने के लिए। एक प्रतिज्ञा की वे सब अपने अपने घरों में एक-एक नीम का पौधा लगाएगी और उस स्थान पर भी एक पौधा लगाएगी जहाँ वो पेड़ था और अपने बच्चों को आजीवन पेड़ों के महत्व कि शिक्षा देगी ताकि वे भी ऐसी गलती न कर सके। महिलाओं ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी कि और पौधे लगाए। पौधों के बड़े होते ही मोहल्ला हरियाली और स्वच्छ हवा से भर गया|इस प्रकार राघव मोहल्ले के महीलाओं को पेड़ों के महत्व की समझ आई|
जन्म तिथि : ०१/०४/२००१
जन्म स्थान : गाँव-सलगवां, जिला- बुलन्दशहर
पिता : श्री कैलाश राघव
माता : श्रीमती मीना देवी
शिक्षा : बी एस सी (बायो), आई०पी०पीजी० कॉलेज बुलन्दशहर, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ से, कम्प्यूटर ओपरेटर एंड प्रोग्रामिंग असिस्टेंट डिप्लोमा, सागर ट्रेनिंग इन्स्टिट्यूट बुलन्दशहर से
कार्य : अध्यापन और साहित्य लेखन
पता : गाँव- सलगवां, तहसील- अनूपशहर जिला- बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश)।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।
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