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दम तोड़ती मानवता के गाल पर तमाचा है पुस्तक पैसा बोलता है।

आशीष तिवारी “निर्मल”
रीवा मध्यप्रदेश
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पुस्तक का नाम- पैसा बोलता है
रचनाकार- गंगा प्रसाद त्रिपाठी ‘मासूम’
संस्करण- प्रथम
प्रकाशक- विश्व साहित्य प्रकाशन प्रयागराज
पुस्तक कीमत-१००
पुस्तक समीक्षक- आशीष तिवारी निर्मल

पिछले दिनों मैं संगम नगरी प्रयागराज की साहित्यिक यात्रा पर था। प्रयागराज के सुप्रिसिद्ध कवियों, शायरों से मुलाकात हुई। इस दौरान देश के युवा कुशल व्यंग्यकार गंगा प्रसाद त्रिपाठी ‘मासूम’ द्वारा विरचित काव्य कृति ‘पैसा बोलता है’ प्राप्त हुई। काव्य संग्रह का सघन अध्ययन करने के पश्चात मैंने पाया कि उक्त काव्य संग्रह में अंधी दौड़ में शामिल गिरावट के आखिरी पायदान पर पड़ी गिरती हुई आदमीयत और मानव जीवन के विविध् प्रसंगो को स्वंय में संजोए गीत, ग़ज़ल, व्यंग्य, मुक्तक, कविता सहित कुल ३२ एक से बढ़कर एक रचनाएँ हैं। गंगा प्रसाद त्रिपाठी ‘मासूम’ की कृतियाँ क्रमश: दूसरी आजादी, ठण्डा होता शहर, आम आदमी बोल रहा हूँ। शीघ्र पाठकों के हाथ में होगी। पुस्तक ‘पैसा बोलता है’ ने मुझसे जो संवाद किया वो मेरे अंतस को झकझोर के रख दिया। व्यंग्यकार ने इस संग्रह में व्यवस्था में मौजूद हर वृत्ति पर कटाक्ष किए हैं और ज्वलंत मुद्दों को गहरे तक छुआ है। किसान आत्म हत्या कर रहा है। मजदूर दो वक्त की रोटी के लिए मर रहा। जीवन में अनेक पीड़ाओं से गुजरते हुए आम आदमी की व्यथा को उकेरा है। वहीं नक्काशी काट रहे सियासतदारों को आमजन के प्रति असंवेदनहीनता को रचनाकार द्वारा बेहद तरीके और सलीके व्यक्त किया गया है। मानवता मरणासन्न अवस्था में है किसी के आंसू और दर्द से लोगों का वास्ता नही है लोग निज स्वार्थ सिद्धी में ही तल्लीन हैं। समाज सेवक का चोला धारण कर जो लोग राजनीती में आकर हिन्दुस्तान का बेड़ागर्क कर रहे हैं उनके लिए पैसा सर्वोपरि हो गया, मज़हब और दीन, हीन भिक्षु, विकलांग, उपेक्षित, शोषित जनों को ऐसे राजनीतिक जन सदैव हासिए पर देखते रहने के आदी हैं। तथाकथित नेता जो घोटालों में आकंठ डूबे हैं इस पुस्तक के माध्यम से व्यंग्यकार ने उनके हृदय को भेदकर आईना दिखाया है और सवाल किया है कि क्या इसीलिए मंगल पांडे ने सीने पर गोली खाये थे, झाँसी की रानी ने लहू बहाये थे, चंद्रशेखर ने प्राण लुटाये थे, लालाजी ने लाठी खा प्राण गँवाये थे। वहीं रचनाकार ने कोख में मारी जा रही बेटियों के दर्द को उकेरा है दहेज की बलि वेदी पर चढ़ती बहुओं की व्यथा पढ़कर मन द्रवित हो उठा। मोबाइल, इंटरनेट में खोई पीढ़ी लहू के रिश्ते को दरकिनार कर रही है। रचनाकार ने युवा पीढ़ी से माँ बाप के त्याग, समर्पण को जीवन पर्यन्त न भूलने की बात कही है। रचनाकार गंगा प्रसाद त्रिपाठी ‘मासूम’ जिस तरह से अपने लेखन में व्यंग्य के साथ जीवन की झंझावतों का वर्णन किया है। जिसके लिए बधाई के पात्र हैं।
काव्य संग्रह में गागर में सागर भरने का काम किया है। रचनाकार को शुभकामनाएँ देता हूँ कि आप यूं ही अपने लेखनी के माध्यम से देश, समाज को नित नई दिशा, दशा देते रहें। आपके आगामी काव्य संग्रहों का पाठकों को बेसब्री से इंतजार है। सधन्यवाद….।

परिचय :- आशीष तिवारी निर्मल का जन्म मध्य प्रदेश के रीवा जिले के लालगांव कस्बे में सितंबर १९९० में हुआ। बचपन से ही ठहाके लगवा देने की सरल शैली व हिंदी और लोकभाषा बघेली पर लेखन करने की प्रबल इच्छाशक्ति ने आपको अल्प समय में ही कवि सम्मेलन मंच, आकाशवाणी, पत्र-पत्रिका व दूरदर्शन तक पहुँचा दीया। कई साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल वर्तमान समय में कवि सम्मेलन मंचों व लेखन में बेहद सक्रिय हैं, अपनी हास्य एवं व्यंग्य लेखन की वजह से लोकप्रिय हुए युवा कवि आशीष तिवारी निर्मल की रचनाओं में समाजिक विसंगतियों के साथ ही मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण, भारतीय ग्राम्य जीवन की झलक भी स्पष्ट झलकती है, इनकी रचनाओं का प्रकाशन एवं प्रसारण विविध पत्र-पत्रिकाओं एवं दूरदर्शन-आकाशवाणी के विविध केंद्रों से निरंतर हो रहा है। वर्तमान समय पर हिंदी और बघेली के प्रचार-प्रसार में जुटे हुए हैं।
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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