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प्यारी माँ

योगेश पंथी
भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
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माँ जब भी प्यार देती थी
अपना सब वार देती थी।
मेरी एक मुस्कान पर वो
आशीष हजार देती थी॥

और पिता जी ऐसेे थे
मानो ईश्वर के जैसे थे।
जो मांगा ला देते थे
चाहे कम ही पैसे थे॥

हमको सु:ख देने को जो
अपने सब सु:ख भूले थे।
जब अपनी आँखो मे आँसू
उनकी बाहो के झूले थे॥

उनके दामन के साये मे
महलो के वैभव भूले थे।
सब संभव था बाबु जी को
अब लेकिन वो बात कहाँ॥

एक नाता न हमसे संभला
वो दस को भी न भुलाते थे।
एक चूले आंच पे जब
माँ स्वादिष्ठ भोज बनाती थी।।

नित प्रेम से भोजन पाते थे
अपने हाथो से खिलाती थी।
इतने प्रेम से प्यारी माँ
सबको भोजन देती थी॥

वो भी अमृत लगती थी
जो रूखी सूखी रहती थी।
माँ की ममता के आंचल मे
प्रेम की धारा बहती थी॥

अपने लाड़ प्यार से वो जब
सारे दू:ख हर लेती थी।
जब माँत पिता का साया था
वो दिन बडे सुहाने थे।।

परिचय :- योगेश पंथी
निवासी : टीलाजमालपुरा भोपाल (भोजपाल) मध्यप्रदेश
राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच से लेखन यात्रा प्रारंभ ….
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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