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रचयिता : डॉ. अर्चना राठौर “रचना”
दिन चर्या है चारों धाम
दिनचर्या है हर प्राणी की,
लगभग होती एक समान।
पूजा अर्चना गुरू वंदना,
प्राणायाम औ फिर व्यायाम।
सुबह से उठकर गृहिणी करती,
बारी – बारी सारे काम।
जब आती भोजन की बारी,
वो ही बनाती भोजन पान।
अन्नपूर्णा के हाथों का,
स्वादिष्ट भोजन और जलपान।
छककर जीमें बच्चे-बूढे़,
संग मेहमान और मेजबान |
कहीं सम्हाले घर को नारी ,
कहीं सम्हाले दोनो काम।
बच्चे स्कूल कॉलेज हैं जाते,
और पतिदेव अपने काम।
पढ़लिख दिन भर मेहनत करके,
जब आवे वे घर को शाम।
मात – पिता और दादा-दादी संग,
सब मिल बेठे इक ही धाम।
भोजन कर अपने कक्षों में,
सब होते जब अंतर्धान।
वह बच्चों को पूर्ण कराती,
विद्यालय से मिला जो काम।
गृहकार्य से निवृत्त होकर,
तब लेती है वो विश्राम।
सुखद स्नेहिल परिवार की,
धुरी है नारी सुबहोशाम।
करे निरंतर सेवा-सुश्रषा,
मात-पिता की सुबहोशाम।
नारी ही है शक्ति घर की,
दिनचर्या ही चारों धाम।
लेखिका परिचय :-
नाम – डॉ. अर्चना राठौर “रचना” (अधिवक्ता)
निवासी – झाबुआ, (म.प्र.)
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