Saturday, September 21राष्ट्रीय हिन्दी रक्षक मंच पर आपका स्वागत है... अभी सम्पर्क करें ९८२७३६०३६०

उम्मीदों की भोर

भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
बैतूल मध्य प्रदेश

********************

निगल रहा अब
अंधकार जग,
होकर आदमखोर।
क्षितिज परे
जाकर दुबकी है,
उम्मीदों की भोर।।

जंगी ताले
ने जकड़ा है,
दुनिया का चिंतन।
शुष्क कूप में
करते मेंढक,
सरहद पर मंथन।।

हर बैठक का
फल खा जाता,
छली केमरा चोर।।
क्षितिज परे
जाकर दुबकी है,
उम्मीदों की भोर।।१

निर्जन में
सम्पन्न भेड़िए,
करते हैं कसरत।
कम्बल ओढ़े
चरती हैं अब,
कुछ भेड़ें आहत।।

शून्य कौर के
आगे लगकर,
करे पेट में शोर।
क्षितिज परे
जाकर दुबकी है,
उम्मीदों की भोर।।२

भगा दिए हैं
दर से शिल्पी,
इन बाजारों ने।
वस्त्र जंग के
पहन लिए हैं,
अब औजारों ने।।

‘जीवन’ का हर
उत्सव भूला,
इस जंगल का मोर।
क्षितिज परे
जाकर दुबकी है,
उम्मीदों की भोर।।३

परिचय :- भीमराव झरबड़े ‘जीवन’
निवासी- बैतूल मध्य प्रदेश
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।

आप भी अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपने परिचय एवं फोटो के साथ प्रकाशित करवा सकते हैं, राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच पर अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, आदि प्रकाशित करवाने हेतु अपनी कविताएं, कहानियां, लेख, हिंदी में टाईप करके हमें hindirakshak17@gmail.com पर अणु डाक (मेल) कीजिये, अणु डाक करने के बाद हमे हमारे नंबर ९८२७३ ६०३६० पर सूचित अवश्य करें …🙏🏻

आपको यह रचना अच्छी लगे तो साझा जरुर कीजिये और पढते रहे hindirakshak.com राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच से जुड़ने व कविताएं, कहानियां, लेख, आदि अपने चलभाष पर प्राप्त करने हेतु राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच की इस लिंक को खोलें और लाइक करें 👉 👉hindi rakshak manch 👈… राष्ट्रीय हिंदी रक्षक मंच का सदस्य बनने हेतु अपने चलभाष पर पहले हमारा चलभाष क्रमांक ९८२७३ ६०३६० सुरक्षित कर लें फिर उस पर अपना नाम और कृपया मुझे जोड़ें लिखकर हमें भेजें…🙏🏻

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *