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सवेरा

संजय सिंह मीणा
करौली (राजस्थान)

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निशा नाश की नीव लगी तब,
समझो उदित हुआ उजियारा।
दैत्य प्रसंग विलुप्त भए तब,
किरणों ने धरा पर पैर पसारा।।

हुई यामिनी, लुप्त बिलख कर,
तारे चांद को निद्रा आई।
भोर की प्रीत, पड़ी अंबर से,
शीतल मंद, पवन उठ आई।
पीत रंग, में रंगा दिवाकर,
जगा, जगत का पालनहारा,
दैत्य प्रसंग, विलुप्त भये तब,
किरणों ने धरा पर पैर पसारा….

खग, नभ में भये प्रसन्न चित्त तब,
कृषक, वृषभ ले चला सुखियारा।
पनघट, रंग बिरंग भयो तब,
पुष्प प्रतीक भए किलकारा।
बजी पुण्य आवाज शंख की,
शुरू हुए आदर सत्कारा,,
दैत्य प्रसंग विलुप्त हुए तब,
किरणों ने धरा पर पैर पसारा….

विघ्न विनाशक मंगल दायक,
नवरत्न, पूरक गणनायक।
नित उम्मीद जगे नवज्योति,
तमस को, भोर भयो खलनायक।
विश्व, निशा से मुक्त भयो तब,
ज्योति अलख जगाए सवेरा,
दैत्य प्रसंग विलुप्त भये तब,
किरणों ने, धरा पर, पैर पसारा।।

परिचय : संजय सिंह मीणा
पिता :
रूप सिंह मीणा
माता :
महादेवी
सम्प्रति :
अध्यापक
निवासी
: करौली, राजस्थान

घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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