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बेटी की चिठ्ठी

मंजुषा कटलाना
झाबुआ (मध्य प्रदेश)
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कितना तड़पी थी तू माँ,
जब तूने मूझे जन्म दिया।
कोई मर्द न सह पाये दर्द
इतना तूने सहन किया।
आई जब इस दुनिया मे
माँ तूने मुझको थामा था।
भर कर अपनी बांहो में
प्यार मुझ पर वारा था।
सीने मुझे लगा के अपने,
अपना दूध पिलाया था।
चुम के मुझको झूला बांहो में,
चैन से मुझे सुलाया था।
पर ये दुनिया समझ न पाई,
तेरे मेरे रिश्ते को।
हुई क्या गलती तुझसे मां,
जो जना तूने एक बेटी को।
छीन को तुझसे मुझको मां,
जब कूड़े में मुझे फेंक दिया।
वो निर्दयी ओर कोई नही,
मेरा अपना पिता बना।
रो-रो जब मैंने आंखे खोली,
चींटिया मुझे खा रही।
कोई न था मुझे उठाने वाला,
चीखें दबती जा रही।
भुख ओर दर्द ने मुझे कुछ देर में,
गहरी नींद में सुला दिया।
सुबह जो आई में इस दुनिया मे,
शाम तक फिर मुझे विदा किया।
जानती हूं मां तू आज भी मुझको,
याद करके रोती होंगी।
कई राते बीत जाए, पर तु
न बिल्कुल सोती होगी।
बेटी बनाना बेर हुआ,
पर दोष न उसमे मेरा था।
कुदरत का तोहफा थी में,
अपनो ने मुंह फेर लिया।।

परिचय :- मंजुषा कटलाना
निवासी : झाबुआ (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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