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बेटियाँ आती है

रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)

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बेटियाँ आती है पीहर इसी बहाने
कोई इसे चाहे माने या ना माने
जो खो गया बचपन उसे तलाशने
जो छूट गया रिश्ता उसे निभाने
स्नेह का बन्धन फिर से बांधने
बेटियाँ आती है पीहर…

देहरी पर फिर से दीपक जलाने
रंगोली और अल्पना से आगंन सजाने
वो रस्म और रिवाज निभाने
बेटियाँ आती है पीहर…

फिर से घर आगंन को महकाने
भर-भरकर झोली ममता लुटाने
फिर अल्हड़ सी वो राग सुनाने
बेटियाँ आती है पीहर…

माँ की गोद का सिरहाना बनाने
पिता से अनदेखा प्यार जताने
नोक झोंक में भाई से हार मनवाने
बेटियाँ आती है पीहर…

सखियों के संग फिर से बतियाने
कुछ उनका सुनकर कुछ अपना सुनाने
हो जाए मन हल्का इसी बहाने
बेटियाँ आती है पीहर इसी बहाने
कोई इसे चाहे माने या ना माने

परिचय : रश्मि श्रीवास्तव “सुकून”
निवासी : मुक्तनगर, पदमनाभपुर दुर्ग (छत्तीसगढ़)
घोषणा : मैं यह शपथ पूर्वक घोषणा करती हूँ कि उपरोक्त रचना पूर्णतः मौलिक है।


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