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कटते-कटते पेड़ कट गए

रश्मि लता मिश्रा
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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कटते-कटते पेड़ कट गए
अब विकास के नाम पर।
पर्यावरण संतुलन बिगड़ा
थोड़ा तो ख्याल कर।
रोज पहाड़ धसकते रहते
बर्फ बहे सैलाब सा,
उत्तराखंड में कहर राजता
डर बसता शमसान सा।
जीव जंतु जल जहर में पलते
उनका भी तो ध्यान धर।
पर्यावरण संतुलन बिगड़ा
थोड़ा तो ख्याल कर।
ग्लोबल वार्मिग बढ़ती जाती
धरा भी वंध्या हो चली
नित नई प्रकृति की विपदा
कितना टालो,नहीं टली।
ऊपर से कोरोना आया
बदले वाले भाव धर।
पर्यावरण संतुलन बिगड़ा
थोड़ा तो ख्याल कर।
वायु प्रदूषण,ध्वनि प्रदूषण
महानगर की देन है।
स्वच्छ नदी गंगा को रक्खो
मिलता जीवन चैन है।
वृक्ष लगाने,जल को बचाने
श्रम तू कुछ तो दान कर
पर्यावरण संतुलन बिगड़ा
थोड़ा तो ख्याल कर।
कर ले प्रण न कचरा फैले
न ही खुले में शौच हो।
सड़कें अपना आंगन जानो
घर से पहले देश हो।
दिशाएं चारों स्वच्छ बने ये,
तू तो जतन हजार कर।
पर्यावरण संतुलन बिगड़ा
थोड़ा तो ख्याल कर।

परिचय :– रश्मि लता मिश्रा
निवासी : बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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