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श्रापित गुड़िया

आदर्श उपाध्याय
अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश

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वह ७ जुलाई २०१७ का दिन था, जब मैं पहली बार किसी शहर के लिए रवाना होने वाला थ। जैसा कि हमारे गांवों की रीति है कि जब कोई अपने घर से दूर प्रवास के लिए जाता है तो जाने से पहले मां, बहन, बुआ, भाभी आदि लोग रास्ते में खाने पीने के लिए कुछ ना कुछ तल भुनकर दे देती हैं ताकि मेरा बेटा, भाई, भतीजा, देवर रास्ते में भूखा ना रहे। ठीक ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ। जब मैं नहा धोकर तैयार हो गया तो मम्मी और भाभी ढेर सारी पकौड़ी तैयारी मेरे लिए रख दिया लेकिन मेरी इन सब चीजों को साथ ले जाने की बिल्कुल भी रुचि नहीं थी और मेरी पलकें भीगी हुई थी क्योंकि पहली बार जन्म देने वाली मां और जीवन प्रदान करने वाली जन्मभूमि को छोड़कर कहीं दूर जा रहा था। जैसे तैसे मैं अकबरपुर रेलवे स्टेशन पर पहुंच गया। भैया ने ट्रेन का समय बता दिया था लेकिन जब मैं स्टेशन पर पहुंचा तो पता चला कि ट्रेन ३ घंटे देरी से चल रही है और वह ट्रेन थी फरक्का सुपरफास्ट एक्सप्रेस। मैं स्टेशन पर ट्रेन का इंतजार कर रहा था और मेरे मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे थे मैं ट्रेन में चढ़ पाऊंगा कि नहीं, क्योंकि पहली बार ट्रेन से यात्रा भी करने वाला था दिल्ली अच्छा शहर है कि नहीं, वहां मुझसे कोई दोस्ती करेगा कि नहीं आदि तरह-तरह के सवाल। बीच-बीच में जब परिवार की याद आ जाती थी तो मैं रुँआसा हो जाया करता था। फिर जैसे तैसे ट्रेन आ गई और मैं थोड़ी मशक्कत के साथ ट्रेन में चढ़ गया और आराम से बैठ गया। दो मिनट बाद ट्रेन अकबरपुर से दिल्ली की तरफ धीरे-धीरे बढ़ने लगी ज्यों-ज्यों ट्रेन दिल्ली की ओर बढ़ती मेरी आंखों से आंसू की बूंदें टपकने लगी। फिर अगली सुबह मैं दिल्ली पहुंच गया और ९ जुलाई २०१७ को दिल्ली विश्वविद्यालय के मोतीलाल नेहरू कॉलेज में दाखिला लेने के लिए पहुंचा लेकिन मैं दूसरी कटऑफ की बजाए तीसरी कटऑफ में आया था इसलिए इस कॉलेज में दाखिला नहीं मिल पाया। उसके बाद मैं भैया के साथ शहीद भगत सिंह कॉलेज में गया वहां भी यही समस्या आ खड़ी हुई हम लोग वापस लौट कर कॉलेज के गेट तक पहुंचे ही थे तभी मैंने भैया से कहा कि मुझे यह कॉलेज अच्छा लग रहा है एक बार और प्रयास कर लीजिए हो सकता है दाखिला मिल जाए और हम लोगों ने दोबारा प्रयास किया और दाखिला मिल गया।
अब मैं २० जुलाई २०१७ को पहले दिन कॉलेज गया तो मेरे मन के मुताबिक कॉलेज का रंग ढंग मुझे पसंद नहीं आया इसका एक कारण यह था कि मैं गांव का भोला भाला लड़का था और लड़कियों से बिल्कुल दूर रहता था पर यहां पर बिल्कुल अलग। सबसे बड़ी चीज यहां पर मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि लड़के इतनी आसानी से और बेहिचक होकर लड़कियों से बात कैसे कर ले रहे हैं? उस दिन शाम को मैं घर जाकर भैया से बोला की यह कॉलेज मुझे पसंद नहीं आ रहा है तो भैया मेरे मनोभाव को समझ गए और बोले कुछ दिन बाद सब ठीक हो जाएगा। हुआ भी वही कुछ दिन बाद मुझे कॉलेज की हर एक प्रिया प्रतिक्रिया अच्छी लगने लगी। फिर धीरे-धीरे क्लास शुरु हो गया और कुछ लड़कों से मेरी दोस्ती बनने लगी यह दोस्त हमारे ही आसपास के जिलों के रहने वाले थे प्रभात मिश्रा, शिवा सिंह, निलेश मणि त्रिपाठी।
अब धीरे-धीरे हम सभी मित्रों का एक समूह बन गया साथ-साथ उठना-बैठना खाना-पीना होने लगा। मेरे बीए (ऑनर्स) हिंदी के फर्स्ट ईयर के फर्स्ट सेमेस्टर का एग्जाम था। और एग्जाम से पहले अवकाश भी होता है तो उन अवकाश के दिनों में शिवा ने मुझसे बताया कि तुम्हें अपने क्लास की एक लड़की पूछ रही थी!
मैं- अच्छा! क्या कह रही है?
शिवा -कुछ नहीं बस पढ़ाई लिखाई के बारे में कुछ पूछना चाहती है।
मैं- ठीक है उससे बोल दो कि मुझसे बात कर ले।
फिर उस लड़की से मैसेज पर मेरी बातचीत शुरू हो गई और वह अपनी आपबीती मुझे बताने लगी। उसने मुझे बताया कि मेरे बॉयफ्रेंड की डेथ हो गई है उसके पेट में स्टोन था।
मैं -अरे !यह कब हुआ?
लड़की-१९ नवंबर
मैं -अरे सो सॉरी भगवान उसकी आत्मा को शांति दे!
लड़की- मेरा पढ़ने में मन नहीं लग रहा एग्जाम भी है समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं?
मैं -कुछ मत करो जो मैं नोट्स बना रहा हूं तुम्हें व्हाट्सएप कर दूंगा बस वही पढ़ लेना।
लड़की- धन्यवाद डियर फ्रेंड!
मैं -अरे इसमें धन्यवाद की क्या बात है! (मेरी एक प्रवृत्ति है कि मैं जरूरतमंदों की सहायता करने के लिए सदैव तैयार रहता हूं चाहे वह कोई भी हो |)
फिर जैसे तैसे परीक्षा खत्म हुई और मेरी और उसकी बातें रफ्तार पकड़ने लगी। उसने मुझे बताया की ११th क्लास में उसकी प्रेम कहानी शुरू हुई थी तो मुझे लगा की यह सब बातें मुझे क्यों बता रही है। कुछ बात तो जरूर है।
मैं उसकी मीठी बातों और व्हाट्सएप स्टीकर को उसकी ओर से हरी बत्ती समझने लगा और कब मैं उससे प्यार कर बैठा मुझे पता ही नहीं चला। मेरी और उसकी बातें मैसेज पर ही अत्यधिक होती थी। कॉलेज में केवल नाम मात्र ही बात हो पाती थी। मेरा दोस्त प्रभात मिश्रा मुझसे कहता था कि कॉलेज में ज्यादा बातें करो पर मेरी हिम्मत नहीं होती थी की जिस प्रकार मैसेज पर बात करता हूं इस प्रकार उसके सामने बोल सकूं।
फिर मैंने ३० जनवरी २०१८ को उससे मैसेज पर ही अपने प्रेम का इजहार किया। लेकिन उसने साफ इंकार कर दिया और बोली अभी भी मैं अपने बॉयफ्रेंड से ही प्यार करती हूं फिर मैंने उससे माफी मांगा और इस बात को किसी से भी ना बताने को कहा वह बोली- इट्स ओके.
अब तो मैं उससे नजर भी नहीं मिला पाता था फिर मैंने अपनी और उसकी बातों को उसकी ही दो सहेलियों से बताया लेकिन उन्होंने इस बात को उस तक पहुंचा दिया और वह मुझ पर भड़क उठी। फोन करके उसे जो समझ में आया मुझे बोल दिया और मैं खामोश होकर उसकी सभी बातों को सुन लिया। फिर मुझे गांव जाना था और मैं गांव चला गया।
अभी भी मैं उससे बात करना चाहता था और शायद वह मुझसे बात करना नहीं चाहती थी क्योंकि मेरे मैसेज का प्रत्युत्तर नहीं देती थी और यदि देती भी थी तो बहुत देर बाद या अगले दिन तक। अब मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूं ?
२७ मार्च २०१८ को उसने अपने व्हाट्सएप स्टेटस पर लिखा कि अब वह कभी कॉलेज नहीं आएगी और आत्महत्या करना चाह रही है। मुझे लगा कि यह सब वह मेरी वजह से कर रही है। मैं स्टेटस देख कर प्रभात को फोन करके रोने लगा तो प्रभात ने मुझे समझाया कि वह एक समझदार लड़की है ऐसा कुछ नहीं करेगी। मैं प्रभात से बोला- यदि उसने आत्महत्या किया तो मैं भी आत्महत्या कर लूंगा।प्रभात बोला -पागल मत बन सब ठीक हो जाएगा।
अगले दिन जब मैं कॉलेज पहुंचा तो मुझे पता चला कि उससे एक और लड़का प्रेम करता है जिसकी वजह से यह सब हुआ है। उस दिन मैंने उस लड़की की तरफ देखा भी नहीं शाम को जब मैं कोचिंग में था। उसी समय उसका फोन आया लेकिन मैं गुस्से में इसका फोन उठाया नहीं लेकिन गुस्सा करता तो भी कितना देर प्यार तो प्यार ही होता है। फिर दोबारा मैंने उसको फोन किया तो वह मुझसे बोली मुझे भूल जाओ और मेरी जैसी कोई और लड़की देख लो।
मैं -मैं तुम ही से प्यार करता हूं।
लड़की -दूसरी से भी हो जाएगा डोंट वरी !
मैं -नहीं मैं तुम्हें भूल नहीं पाऊंगा !
लड़की -हालात के साथ सब ठीक हो जाएगा !
इतने में वह बोली की मम्मी आ गई और उसने फोन काट दिया।
अगले दिन जब मैं कॉलेज पहुंचा तो हिस्ट्री की क्लास ले रहा था लेकिन मैं बिल्कुल रोने ही वाला था मेरे साथ बैठी थी मेरी सबसे अच्छी दोस्त चंद्रा। वह मेरे पीठ पर अपना हाथ रख कर मुझे ढाढस बँधा रही थी और बोली की क्लास में मत रोना इतना सुनते ही मेरी आंखें डबडबा गई लेकिन मैं रोया नहीं।
उसके बाद जब मैं प्रभात से मिला तो उसके कंधे पर सिर रखकर रोने लगा तो उसने मुझे डांटा और समझाया कि लड़की के चक्कर में क्यों बर्बाद हो रहा है लड़की और बस एक जाएगी दूसरी आएगी। मैं -बोला मैं उससे बहुत प्यार करता हूं। तब प्रभात और चंद्रा दोनों ने ही उस लड़की से बात किया कि उसने मुझे क्यों इंकार कर दिया लेकिन उसने कोई उत्तर नहीं दिया।
फिर हालात के बदलने पर मैं भी उससे रुष्ट हो गया उसे देखना अब मेरी फितरत नहीं लेकिन उससे प्यार करना मानो मेरी जरूरत बन गई थी। मैं उससे उतना ही प्यार करता था जितना पहले करता था।
१ नवंबर २०१८ को हम लोग इंडिया गेट घूमने गए थे तो वहां से आते समय मुझे पता चला कि वह लड़की जिससे मैं प्यार करता था अपने बॉयफ्रेंड की डेथ के बाद ही या उससे कुछ दिन पहले से ही किसी और लड़के से प्यार करने लगी थी। यह बात सुनकर उस समय तो मैं चुप रहा लेकिन भीतर ही भीतर झल्ला उठा।
तभी से उसके लिए मेरे दिल में धीरे-धीरे नफरत पैदा होने लगी और अब नफरत इतनी बढ़ गई है कि उसका चेहरा भी देखने को दिल नहीं करता है। और मैं आज तक नहीं समझ पाया कि मेरा प्यार सच्चा था या उसका लेकिन एक बात मेरे अंदर घर कर गई कि प्रवासी प्यार ना करो तो ज्यादा अच्छा है क्योंकि इसके मिलने ना मिलने की कोई गुंजाइश नहीं होती है और मेरा प्यार तो ना मिलने के बाद भी मुझे खुद से नफरत करने को मजबूर कर दिया कि ऐसे इंसान से मैंने क्यों प्यार किया जिसे प्यार का मतलब ही नहीं पता है।
कहा जाता है कि “जिसे शिद्दत से चाहो पूरी कायनात उसे आपसे मिलाने की साजिश रचती है” लेकिन इस प्रेम कहानी में मैं यह नहीं समझ पाया की मेरी मोहब्बत अधूरी थी या कायनात की साजिश। (पूर्व प्रकाशित प्रतिलिपि हिंदी ऐप)

परिचय :- आदर्श उपाध्याय
निवासी : भवानीपुर उमरी, अंबेडकर नगर उत्तर प्रदेश


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