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शक का इलाज

सुभाषिनी जोशी ‘सुलभ’
इन्दौर (मध्यप्रदेश)

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नीरू अपनी स्कूटी पेप से जा रही थी। नीरू गाड़ी धीमे ही चलाती है। अचानक एक अधेड़ उम्र के व्यक्ति उसके साथ चलने लगे। उनके पास भी स्कूटी पेप थी। वो व्यक्ति झुककर मेरी स्कूटी में नीचे की ओर देखने लगे। वहाँ मेरा पर्स रखा था पैरों के बीच। मेरे पर्स में मेरा मंगलसूत्र रखा था जो आफिस से लौटते वक्त सुधरवाना था। मैं कुछ बुरा सोंचती उसके पहले ही बो बोल पड़े बेटा रिजर्व में पेट्रोल की नाब किधर होती है? मैंने मुस्कुरा कर उन्हें रिजर्व में पेट्रोल की नाब की स्थिति समझाई। वे व्यक्ति आगे बढ़ गये और मैं सोचने लगी की शक का कोई इलाज नहीं होता।

परिचय :- सुभाषिनी जोशी ‘सुलभ’
जन्म तिथि : ०३/०४/१९६४
शिक्षा : बी. एस. सी; एम.ए.(अँग्रेजी साहित्य), बी. एड.
सम्प्रति : शास. शाला में शिक्षिका !
साहित्यिक गतिविधि : गद्य एवं पद्म लेखन, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में १०० से अधिक रचनाएँ प्रकाशित, विभिन्न मंचो से २० से अधिक सम्मान, १२ से अधिक आनलाइन काव्य पाठ
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करती हूँ कि मेरी यह रचना स्वरचित एवं मौलिक है।


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