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संस्कृति अपने भारत की

अख्तर अली शाह “अनन्त”
नीमच (मध्य प्रदेश)
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संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है।
सत्य अहिंसा न्याय दया की,
जो जग में महतारी है।।

सच्चाई के पथ पर चलकर,
हम विपदाएं सहते हैं।
झूठों की दुनिया में दो गज,
दूर सदा ही रहते हैं।।

धर्म युक्त जीवन जीने में,
झूठ नहीं चल पाता है।
यूँ ही सत्यनारायण लोगों,
जगत पिता कहलाता है।।

कोई भी युग हो असत्य की,
खिली नहीं फुलवारी है ।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है ।।

हम हैं पथिक अहिंसक पथ के,
सब जीवों से प्यार करें।
एक घाट पर शेर बकरियां ,
पानी पीएं नहीं ड़रें।।

बिना वजह जीवों की हत्या,
घोर पाप कहलाता है।
हमको तो मन दुखे किसीका,
ये तक नहीं सुहाता है।।

उसे नरक में फेंका जाता,
जो नर अत्याचारी है।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है।।

न्याय सुलभ हो सस्ता हो इस,
नीति नियम पे चलते हैं।
सबको न्याय समान मिले ये,
भाव दिलों में पलते हैं।।

मानव की गरिमा की रक्षा,
का संकल्प हमारा है।
अपने अंतर की गहराई,
से ये सच स्वीकारा है।।

अन्यायी को नहीं सहा है,
सही नहीं मक्कारी है।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है।।

दया रही है मूल धर्म का,
सभी जीव हमको प्यारे।
करुणा के सूरज तम हरते,
करते हैं वारे न्यारे।।

वसुधा है परिवार एक ही,
कोई नहीं पराया है।
उसे मिला है अभय सदा जो,
शरण मांगने आया है।।

हानि लाभ हम नहीं सोचते,
करता ये व्यापारी है।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है।।

धर्म समन्वय सदाचार की,
एक त्रिवेणी पावन ये।
खरा कसौटी पर उतरा जो,
लोक हितेषी चिंतन ये।।

इस चिंतन से सतत जिंदगी,
सफल यहां करते हैं हम।
बहुमूल्य अपना जीवन ये,
इसीलिए तो है अनुपम।।

“अनंत” त्याग तपस्या का ये,
सौदा अति हितकारी है।
संस्कृति अपने भारत की,
हमें जान से प्यारी है।।

परिचय :- अख्तर अली शाह “अनन्त”
पिता : कासमशाह
जन्म : ११/०७/१९४७ (ग्यारह जुलाई सन् उन्नीस सौ सैंतालीस)
सम्प्रति : अधिवक्ता
पता : नीमच जिला- नीमच (मध्य प्रदेश)
घोषणा पत्र : मैं यह प्रमाणित करता हूँ कि सर्वाधिकार सुरक्षित मेरी यह रचना, स्वरचित एवं मौलिक है।


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