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पपीहे की साधना

प्रवीण त्रिपाठी
नोएडा

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महाश्रृंगार छंद

गगन से होती जब बरसात।
धरा की बुझती है तब प्यास।
सूर्य ढलने से होती रात।
चाँद लाता है नया उजास।।1

मेघ को तकता चातक रोज़।
नहीं मिलती उसको वह बूंद।
स्वाति की प्रतिदिन करता खोज।
प्रार्थना करता अँखियाँ मूंद।2

ईश का करता निशदिन ध्यान।
स्वाति की बूंद एक मिल जाय।
मेघ करते उसका कल्यान।
बूंद पी फूला नहीं समाय।3

बुझी है जब से उसकी प्यास।
प्रेम से गाता है वह गीत।
अटल है प्रभु पर अब विश्वास।
मानता उनको अब वह मीत।4

परिचय : प्रवीण त्रिपाठी नोएडा


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