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क्रूर नियति

शरद सिंह “शरद”
लखनऊ

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विहंस उठी नव किसलय
अन्तर्मन के मरुस्थल में,
रोम रोम पुलकित हो झूमा
स्वप्न सजे अन्तस्तल में
चमक उठी चन्द्र चांदनी,
वरण कर रही प्रियतम का,
झीगुर की झंकार से सहसा,
मिटा ताप ज्यूं अन्स्तल का।
रुनझुन रुनझुन मन ललचाया
बज उठी पयलिया पांवों की।
विहंस उठा हर तार हृदय का,
बजी रागिनी अरमानों की।
सहसा आये इक पवन झोंके ने
बिखरा दिए इन दृगों के सपने।
फिर बनी यह साथी तन्हाई,
फिर क्रूर नियति न शरमाई।

परिचय :- बरेली के साधारण परिवार मे जन्मी शरद सिंह के पिता पेशे से डाॅक्टर थे आपने व्यक्तिगत रूप से एम.ए.की डिग्री हासिल की आपकी बचपन से साहित्य मे रुचि रही व बाल्यावस्था में ही कलम चलने लगी थी। प्रतिष्ठा फिल्म्स एन्ड मीडिया ने “मेरी स्मृतियां” नामक आपकी एक पुस्तक प्रकाशित की है। आप वर्तमान में लखनऊ में निवास करती है।


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